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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
५९ इस युग में भी अनेक प्रसिद्ध जैन ग्रन्थकार हुए हैं। वि० सं०. १३६१/ई० सन् १३०४.५ में नागेन्द्रगच्छीय मेरुतुङ्गसूरि ने प्रबंधचिन्तामणि की रचना की।' वि०सं० १३७२/ई० सन् १३१५-१६ में ठक्करफेरु ने वास्तुसार नामक ग्रन्थ लिखा । इसी वर्ष पूर्णिमागच्छीय रत्नप्रभाचार्य के शिष्य कमलप्रभ ने पुण्डरीकचरित की रचना की। तपागच्छीय सोमप्रभसूरि के शिष्य सोमतिलक ने क्षेत्रसमास, विचारसूत्र और सप्ततिस्थानक आदि ग्रन्थों की रचना की।४ सप्त. तिस्थानक वि० सं० १३८७ / ई० सन् १३३० में रचा गया।" वि० सं० १३८२ / ई० सन् १३२४-२५ में मलधारगच्छीय राजशेखर के शिष्य सुधातिलक ने संगीतोपनिषद् और एकाक्षरनाममाला की रचना की। १. नृपश्री विक्रमकालातीतसंवत् १३६१ वर्षे फाल्गुनसुदि १५ रवावद्येह श्रीव
र्धमान पुरे चिन्तामणिग्रन्थः समाप्तः ।।
प्रबन्धचितामणि को प्रशस्ति २. दलाल, चिमनलाल डाह्यभाई-ए डिस्कृिप्टिव कैटलॉग ऑफ मैन्यु
स्क्रिप्ट्स इन द जैन भंडार्स ऐट पाटन, जिल्द १, इन्ट्रोडक्सन, पृ० ६१ ३. द्रष्टव्य, पुण्डरीकचरित की प्रशस्ति ४. त्रिपुटी महाराज --संपा० पट्टावलीसमुच्चय, भाग १, पृ० ६२-६३ ५. तेरहसयसगसीए, लिहिअमिणं सोमतिलय सूरीहिं ।
अब्भत्थणाएहेम-स्स संघव इरयणतणयस्स ।।३५८।। त्रयोदशशतसप्ताशीतितमे, लिखितमिदंसोमतिलकसरिभिः ॥ सप्ततिशतस्थानप्रकरण बुद्धिसागरसूरिजनज्ञानमंदिर, बीजपुर से विo. सं० १९९० में प्रकाशित है। तत्पट्टादिरविश्चिरं विजयतां सन्मार्गसन्दर्शक: सूरीन्द्रः किल राजशेखरगुरुर्वादीभपञ्चाननः । शिष्यस्तस्य पुनः सुधाकलश इत्याख्यां दधानो व्यधात् संगीतोपनिषत्सुसारमखिलं विज्ञानिसौख्याय यत् ॥१५१।। संगीतोपनिषद्ग्रन्थं खाष्टानिशवत्सरे । ऋतुशून्ययुगेन्द्वन्दे तत्सारं चापि निर्म मे ॥१५२।। उमाकान्त पी० शाह-संपा० संगीतोपनिषत्सारोद्धार ( बड़ोदरा,,
१९६१ ई०) की प्रशस्ति । ७. जिनरत्नकोश, पृ० ६१
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