________________
जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन ही खरतरगच्छीय जिनेश्वरसूरि के शिष्य चन्द्रतिलकसूरि ने अभयकुमारचरित की रचना की।' तपगच्छीय देवेन्द्रसूरि के शिष्य विद्यानन्दसूरि ने विद्यानन्द नामक एक व्याकरण ग्रन्थ की रचना की। वि० सं० १३०२ में मुनि दीक्षा लेने से पूर्व इनका नाम वीरधवल था। इनके पिता का नाम जिनचन्द्र था, जो उज्जैन के निवासी थे।२ वि० सं० १३२० / ई० सन् १२६४ में जिनेश्वरसूरि के शिष्य प्रबोधचन्द्रगणि ने संदेहदोहावली पर टीका की रचना की । वि० सं० १३२२ / ई० सन् १२६६ में जिनेश्वरसूरि के ही एक अन्य शिष्य धर्म तिलक ने अजितशान्तिलघस्तव टीका की रचना की।४ वि०सं० १३२२ में ही वडगच्छीय मदनचन्द्रसूरि के शिष्य मुनिदेवसूरि ने संस्कृत भाषा में ४८५५ श्लोक-प्रमाण शांतिनाथचरित की रचना की। इन्होंने जयचन्द्रसूरि द्वारा लिखित धर्मोपदेशमाला पर वृत्ति की रचना की। उपरोक्त जैन ग्रन्थकारों के अलावा सिंहतिलकसूरि, नरचन्द्रसूरि, प्रद्युम्नसूरि, विनयचन्द्रसूरि, सोमचन्द्रसूरि, तपगच्छीय धर्मघोषमूरि, सोमप्रभसूरि, क्षेमकीर्तिसूरि, राजगच्छीयप्रभाचन्द्रसूरि, मल्लिसेनसूरि आदि इस युग के प्रमुख जैनाचार्य थे।
यद्यपि वि० सं० १३५४ / ई० सन् १२९७ से गुर्जर देश मुस्लिम शासन के अन्तर्गत आ गया, फिर भी जैन समुदाय ने नये शासकों से सौहार्द्रपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करते हुए अपनी सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों को पूर्ववत् जारी रखा। वि० सं० १३६६ में स्तंभतीर्थ
१. मुनि श्री पुण्य विजय, पूर्वोक्त, पृ० १२१ २. देसाई, मोहनलाल दली चन्द--पूर्वोक्त पृ० ४११ ३. वही, पृ० ४११ ४. वही, पृ० ४१२ ५. शांतिनाथचरित्र को प्रशस्ति, श्लोक ११ ६. जिनरत्नकोश, पृ० १९६ ७. बेलानी, फतेचन्द-जैन ग्रन्थ और ग्रन्थकार, (वाराणसी १९५० ई.)
पृ० ३१ और आगे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org