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________________ ५५ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन बस गये । पेथड़ के गुरु तपागच्छीय धर्मघोषसूरि थे', उनके निर्देश पर पेथड़शाह मांडवदूर्ग आया और यहीं स्थायी रूप से रहने लगा। धर्मघोषसूरि के निर्देश पर इसने संघ के साथ शत्रुजय, गिरनार आदि तीर्थों की यात्रा की। पेथड का पुत्र झांझण भी अपने पिता के समान ही एक विशिष्ट धर्मानुरागी था। इसने भी संघ के साथ शत्रुजय, गिरनार आदि तीर्थों की यात्रा की तथा मार्ग में पड़ने वाले तीर्थों यथाबालापुर, चित्रकूट, अबुदगिरि, चन्द्रावती, प्रहलादनपुर (पालनपुर), अणहिलवाड़, तारङ्गा, कर्णावती आदि की भी यात्रा की। ___ इस सन्दर्भ में इस युग के प्रसिद्ध जैनाचार्यों का भी उल्लेख आवश्यक है। जगचन्द्रसूरि तपागच्छ के प्रथम आचार्य थे उनके विजयचंद्र और देवचन्द्र नामक दो प्रमुख शिष्य थे । विजयचन्द्र पहले वस्तुपाल के लिपिक थे और उन्हीं के प्रयास से इन्हें आचार्य पद प्राप्त हुआ।" देवचन्द्र और विजयचन्द्र में कुछ सैद्धान्तिक मतभेद था। विजयचन्द्र लगातार कई वर्षों तक खंभात में रहे, उनके अनुयायी बड़े-बड़े उपा१. गांधी, लालचंद भगवान–पूर्वोक्त, पृ० ४५६-५७ २. वही, विस्तार के लिये द्रष्टव्य-मुनिसुन्दर सूरिविरचित गुर्वावली [यशोविजयजनग्रन्थमाला, काशी, वीर संवत् २४३७] एवं दलाल, चिमनलाल डाह्याभाई-संपा० प्राचीनगूर्जरकाव्यसंग्रह, परि शिष्ट- 'पेथडरास' पृ० १५४-१५९ ३. विस्तार के लिये द्रष्टव्य---- तपागच्छीय नंदिरत्नसूरि के शिष्य रत्नमंडनगणि कृत-- [अ] उपदेशतरंगिणी [यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क २०, ___वाराणसी, वीर संवत् २४३७] [ब] सुकृतसागरकाव्य [जैन आत्मानंद ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क ४०, भाव नगर, विक्रम संवत् १९७१] ४. 'तपागच्छ पट्टावली' (धर्मसागर) त्रिपुटी महाराज--संपा० पट्टावलीसमुच्चय, भाग-१, पृ०५७ और आगे ५. वही, पृ० ५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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