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जैनधर्म का प्रसार
चन्द्रसूरि, विजयसेनसूरि, उदयप्रभसूरि, नरचन्द्रसूरि, नरेन्द्रप्रभसूरि, बालचन्द्र, जयसिंहसूरि, माणिक्यचन्द्रसूरि, मदन, हरिहर, पाल्हणपुत्र आदि प्रमुख थे।'
वस्तुपाल-तेजपाल के अवसान के पश्चात् कच्छ के वणिक् जगडूशाह ने भी जैन धर्म को उन्हीं के समान प्रश्रय दिया। इसने अनेक जैन तीर्थ क्षेत्रों में जिनालयों का निर्माण कराया ।२ जगडूशाह की सबसे बड़ी उपलब्धि थी-वि० सं० १३१३-१५/ई०सन् १२५५-५८ में दुभिक्ष के समय अनाज का निःशुल्क वितरण । उसने न केवल सर्व साधारण को अनाज वितरित किया बल्कि तत्कालीन शासकों ने भी उससे अनाज लिया। जैनाचार्य परमदेवसरि उनके गुरु थे। तपा. गच्छीय सर्वानन्दसूरि विरचित जगडूचरितमहाकाव्य में इस श्रेष्ठी के सत्कृत्यों का विवरण प्राप्त होता है।
पेथडशाह इस युग के दूसरे महान् जैन श्रेष्ठि थे।५ इनके पिता का नाम 'देशल' था जो अवन्तिदेश स्थिति नन्दूरीपुर नामक स्थान के निवासी थे। वहां के राजा के दुर्व्यवहार से असन्तुष्ट होकर देशलशाह बीजापुर गये और फिर वहां से खंभात आये और वहीं स्थायी रूप से १. सांडेसरा, पूर्वोक्त पृ. ६०-११६ २. स्थाने स्थाने ध्वजारोपं, चकार जिनवेश्मसु ।
जहार जनतादौस्थ्यं, जगडूजगतीतले ।। असङ्ख्यसङ्घलोकेन, समं यात्रां विधाय सः । शत्रुञ्जये रैवतके, प्राय चात्मपुरं वरम् ।। विमलाचल शृङगे स, श्रीनाभेयपवित्रिते । सप्तव देवकुलिका रचयामासिवान् शुभाः ।।
जगडूचरितमहाकाव्य ६/४०, ४१, ५५ ३. इतश्च पूर्णिमापक्षोद्योतिकारी महामतिः ।
श्रीमान्परमदेवाख्यः सूरि ति तपोनिधि : ॥
वही, ६१ ४. संपा० विजयजिनेन्द्रसूरि, प्रकाशक-श्रीहर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला, __लाखाबावल, शांतिपुरी, सौराष्ट्र, १९८२ ई. ५. गांधी, लालचन्द भगवान-पूर्वोक्त, पृ. ५१४ और आगे
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