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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन धर्म स्वीकार कर लिया। जयसिंह सिद्धराज के पश्चात् चौलुक्य सिंहासन प्राप्त करने में उसे जैनों से भी बड़ा सहयोग मिला। राज्यारोहण के पश्चात् कुमारपाल ने न केवल जिनालयों का निर्माण कराया, बल्कि अपने सम्पूर्ण साम्राज्य में वर्ष के विशेष दिनों में पशवध पर रोक लगा दिया। उसके सामन्तों ने भी अपने-अपने क्षेत्रों में इन नियमों को लागू किया। उसी का परिणाम है कि गुजरात की एक बड़ी जनसंख्या आज भी शाकाहारी है।' यद्यपि सोलंकी राजाओं ने शैव धर्म को राजधर्म के रूप में प्रतिष्ठित किया था, परन्तु कुमारपाल ने जैन धर्म स्वीकार करते हए भी शवधर्म के प्रति कोई विद्वेष नहीं रखा । कुमारपाल के पश्चात् अजयपाल गद्दी पर बैठा । वह जैनों का विरोधी था उसने कुमारपाल द्वारा निर्मित अनेक सुन्दर-सुन्दर जिनालयों को नष्ट करा दिया।
चौलुक्यों के पश्चात् बघेल गुर्जरदेश के भाग्यविधाता बने । उनके समय में भी जैन धर्म अत्यन्त उन्नत अवस्था में था। चौलुक्यों के सामन्त बघेल नरेश वीरधवल (ई० सन् १३ वीं शती का द्वितीय चरण ) का मन्त्री वस्तुपाल और उसका लघुभ्राता तेजपाल जैन धर्म के महान् आश्रयदाता के रूप में विख्यात थे। उन्होंने शत्रुजय, गिरनार, आबू तथा अनेक जैन तीर्थों पर नूतन जिनालयों का निर्माण एवं प्राचीन जिनालयों एवं उपाश्रयों का जीर्णोद्धार कराया। इसी समय तलाजा, आमरण (प्राचीन अम्बुरिणी, जिला जामनगर-सौराष्ट्र ) और खंभात आदि तीर्थों पर भी नये-नये जिनालयों का निर्माण कराया गया। वस्तुपाल-तेजपाल ने न केवल जिनालयों का निर्माण कराया बल्कि अनेक जैन आचार्यों को अपने यहां प्रश्रय भी दिया जिनमे सोमेश्वर, हरिहर, नानक, यशोवीर, सुभट, अरिसिंह, अमर१. मजुमदार, ए० के० -पूर्वोक्त, प० ३१५-६ २. प्रबन्धचिन्तामणि-[संपा० मुनि जिनविजय, शांतिनिकेतन, १९३३ई०]
पृ० ९६ ३. सांडेसरा, भोगीलाल जयसिंह-महामात्यवस्तुपाल का साहित्यमंडल
और संस्कृतसाहित्य में उसकी देन वाराणसी १९५९ ई०] पृ० ४८
और आगे ४. वही
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