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जैनधर्म का प्रसार
के समय तो श्वेताम्बरों के सिद्धान्त गुर्जरधरा में जैन धर्म के सर्वमान्य सिद्धान्त बन गये । सिद्धराज के दरबार में ही श्वेताम्बरों और दिगम्बरों में शास्त्रार्थ हआ। दिगम्बरों की ओर से कर्णाट देश के कुमुदचन्द्र तथा श्वेताम्बरों की ओर से आचार्य वादिदेवसूरि ने भाग लिया।' इस शास्त्रार्थ में दिगम्बरों की हार हुई और गुर्जरभूमि से उनका प्रभाव समाप्त हो गया।२ जयसिंह सिद्धराज को अनेक जिनालयों के निर्माण कराने का भी श्रेय प्राप्त है। ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि हेमचन्द्र के अनुरोध पर राजा ने उर्जयन्तगिरि पर नेमिनाथ की पूजा की और पुत्र के लिये कामना की। उत्तरवर्ती जैन परम्परानुसार इस अवसर पर हेमचन्द्र भी उपस्थित थे और यह बात असम्भव नहीं प्रतीत होती। ____ जयसिंह सिद्धराज के पश्चात् कुमारपाल [ ई० सन् ११४३११७२ ] गुर्जरदेश का शासक बना। कुमारपाल जैन धर्म का महान् पोषक था और उसी के प्रयास के फलस्वरूप ही गुर्जरदेश सदैव के लिये जैनधर्म के एक प्रमुख केन्द्र के रूप में प्रतिष्ठित हो सका। इस महान कार्य के लिये हेमचन्द्राचार्य, जो उस युग के सर्वश्रेष्ठ विद्वान थे, को ही श्रेय दिया जाता है। हेमचन्द्र का कुमारपाल पर यह प्रभाव बहुत कुछ आचार्य के व्यक्तिगत चरित्र पर आधारित था क्योंकि उनके जीवन में धार्मिक संकीर्णता तो लेशमात्र भी न थी। कुमारपाल के समय में जैन धर्म राजधर्म के रूप में प्रतिष्ठित था।" ऐसा कहा जाता है कि सिंहासनारोहण के पूर्व वह शैवधर्मोपासक था और देवपत्तन में उसने एक काष्ठनिर्मित शिवालय का भी निर्माण कराया था।६ हेमचन्द्राचार्य के सम्पर्क में जाने पर कुमारपाल ने जैन
१. प्रभावकचरित-वादिदेवसूरिचरितम् पृ० १७४ ।। २. देसाई, मोहनलाल दलीचन्द-जनसाहित्यनो संक्षिप्तइतिहास
[बम्बई १९३३ ई०] पृ० २५३-२५५ ३. गांधी, लालचन्द भगवान पूर्वोक्त, पृ० ६६ और आगे ४. वही ५. परीख और शास्त्री-पूर्वोक्त, भाग ४-सोलंकी काल, पृ० ३७०-७११ ६. मजुमदार, ए० के०-पूर्वोक्त, पृ० ३१४ और आगे
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