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________________ जैनधर्म का प्रसार के पौत्र रुद्रसिंह द्वारा उत्कीर्ण कराया गया है । इसमें जैन पारिभाषिक शब्द जरामरण, केवलज्ञान आदि का उल्लेख है ।" गुफा में भद्रासन, मीनयुगल, स्वास्तिक आदि अष्टमङ्गलों का भी अंकन है । ढंक नामक स्थान पर भी इसी काल की गुफाओं का पता चला है । इन गुफाओं से आदिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर तथा अन्य तीर्थंकरों की प्रतिमायें मिली हैं, जो ई० सन् की प्रथम शताब्दी की हैं । इस प्रकार स्पष्ट होता है कि ई० सन् की प्रारम्भिक शताब्दियों में इस क्षेत्र में जैन धर्म लोकप्रिय हो चुका था । ४८ ४ गुप्तयुग में भी यह क्षेत्र जैन धर्म के प्रमुख केन्द्र के रूप में प्रति: ष्ठित रहा, इसका सबसे पुष्ट प्रमाण है वलभी नगरी में वीर निर्वाण के ९८० या ९९३ वर्ष पश्चात् जैन आगमों को पुस्तकारूढ़ करने के लिये एक संगीति का आयोजन; जो वलभीवाचना के नाम से विख्यात है । परम्परानुसार यह वाचना वलभी के राजा ध्रुवसेन के काल में हुई । परन्तु यह कथन भ्रामक है। मैत्रकों का प्रश्न है, वे ब्राह्मणीय और बौद्ध ५ जहां तक वलभी के धर्मोपासक थे, परन्तु ...१ १. क्तृ रग क्षत्रप स्वामि ) चष्टनस्य प्र ( पो ) त्रस्य राज्ञः क्षत्रपस्य स्वामिजयदामपोत्रस्य - राज्ञो महाक्ष २ (च) त्रशुक्लपक्षस्य दिवसे पञ्चमे . ( ५ ) इह गिरिनगरे देवासुरनागयक्षराक्षसेन्द्रि ...३ 1 • प्रक (?) मिव प केवलज्ञानसं प्राप्तानां जितजरामरणानं ( ? ) ...४ वर्जेस, जेम्स - एण्टिक्विटीज ऑफ काठियावाड़ एण्ड कच्छ ( नई दिल्ली १९७१ ई०) पृ० १३९-४१ २. वही ३. वही, पृ० १५० - १५२ ४. धर्मसागर – कल्पसूत्रकिरणावली (जैन आत्मानन्दसभा, भावनगर ई० सन् १९२२) पृ० १२९-३२ विनयविजय - कल्पसूत्र सुखबोधाटीका [हीरालाल हंसराज, जामनगर, १९३९ ई० पृ० १२५-२६ ५. वही ६. द्रष्टव्य -- प्रस्तुत ग्रन्थ के अन्तर्गत 'वलभी' । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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