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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
के रूप में कार्य किया और आने वाली शताब्दियों में उसकी लोकप्रियता को बनाये रखने में अतुलनीय योगदान दिया। विजयनगर साम्राज्य के शासक यद्यपि ब्राह्मणीय धर्मोपासक थे, परन्तु जैन धर्म को भी उन्होंने पर्याप्त प्रश्रय दिया। इस वंश के नरेश बुक्काराय, देवराय 'प्रथम', उसकी रानी भीमादेवी, जिसने श्रवणबेलगोला के एक वसति के लिये भगवान् शान्तिनाथ की प्रतिमा का निर्माण कराया था, देवराज 'द्वितीय' आदि जैन धर्म के सहायक के रूप में विख्यात हैं।' देवराज 'द्वितीय' ने ई० सन् १४२४ में वराङ्ग के नेमिनाथवसति को एक ग्राम दान में दिया। इसके अतिरिक्त ई० सन् १४२६ में उसने राजधानी हम्पी में भी एक चैत्यालय का निर्माण कराया। कृष्णदेवराय, (ई० सन् १५०९-२९) के शासनकाल की यह विशेषता थी कि उस समय सभी धर्मों के अनुयायियों के साथ उदारता और उनको समान रूप से संरक्षण प्राप्त था। ई० सन् १५१६ और ई० सन् १५१९ में उसने विभिन्न जैन वसतियों को दान दिया। ई० सन् १५२९ में वेल्लारी जिले के चिप्पगिरि स्थित एक वसति को दान दिया गया। सम्राट् के अतिरिक्त उसके कुछ अधिकारियों ने भी जैन धर्म को महान् उत्कर्ष प्रदान किया। इस सम्बन्ध में एक धर्मनिष्ठ जैन सेनापति इरुगप्प (ई०सन् १३८४-१४४२) का उल्लेख किया जा सकता है जिसने हरिहर 'द्वितीय' और देवराय 'द्वितीय' के अधीन अपने सेवाकाल में साम्राज्य के विभिन्न भागों में मन्दिरों का निर्माण कराया, उन्हें उदार सहायता दी और अनेक जैन आचार्यों को संरक्षण प्रदान कर इस धर्म की निष्ठापूर्वक सेवा की।
गुजरात-काठियावाड़ में जैन धर्म जैसा कि पहले कहा जा चुका है, जैन धर्म का गुजरात-काठियावाड़ से यथेष्ठ प्राचीन काल से ही सम्बन्ध रहा है। जैन साहित्यिक १. सालेटोर-पूर्वोक्त-पृ० ३०१ । २. वही, पृ० ३०२। ३. वही. ३०१। ४. वही, पृ० ३०१ । ५. वही, प० ३०३-३०४ ।
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