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________________ जैनधर्म का प्रसार कराया गया, जिनमें से अनेक जिनालय आज भी विद्यमान हैं।' चन्देल शासकों के उदार एवं सहयोगपूर्ण नीति के कारण ही उक्त जिनालयों का निर्माण सम्भव हो सका। परमार नरेशों के काल में भी जैन धर्म की यथेष्ठ उन्नति हुई । उनकी राजधानी धारा नगरी एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विद्याकेन्द्र के रूप में विख्यात रही। भोज जैसे महान् विद्याप्रेमी सम्राट और उसके कवि मंडल ने अपनी रचनाओं द्वारा सम्पूर्ण भारत में ख्याति प्राप्त कर ली थी। जैन वाङ्गमय और संस्कृति की दृष्टि से इस नगरी का अत्यधिक महत्त्व है। दसवीं शती से चौदहवीं शती तक अनेक मान्य जैनाचार्यों एवं विद्वानों ने इस नगरी में निवास किया। इस अवधि में इनके द्वारा विपूल परिमाण में साहित्य का सृजन हुआ। यह तथ्य यहां रचे गये ग्रन्थों की प्रशस्तियों एवं उनके आन्तर उल्लेखों से ज्ञात होती है। परमार नरेश मुञ्ज (ई० सन् ९७२-९९५) ने अमितगति, महासेन, धनेश्वर और धनपाल नामक जैनाचार्यों को अपने दरबार में संरक्षण प्रदान किया था। भोज (ई०सन् १०००-१०५०) के दरबार में अनेक जैनाचार्यों ने संरक्षण प्राप्त किया। प्रसिद्ध दिगम्बर जैनाचार्य प्रभाचंद्र को भोज ने सम्मानित किया था । धारा नगरी में कई जिनालय विद्यमान थे जिनमें दो विशेष महत्त्व के रहे, प्रथम-पार्श्वनाथ जिनालय, जहां देवसेन ने वि० सं० ९९०ई० सन् ९३३ में दर्शनसार की रचना की और द्वितीय-जिनवरविहार जहां नयनन्दी ने वि० सं०. ११००ई० सन् १०४३ में सुदर्शनचरित की रचना की।" ग्यारहवीं और बारहवीं शती में उत्तर भारत के अधिकांश क्षेत्रों पर चाहमानों और गहड़वालों का शासन रहा। शाकम्भरी के चाहमान नरेश, जिन्होंने १०वीं शती के उत्तरार्ध में विशेष ख्याति प्राप्त की, साहित्य, विशेषकर कला और स्थापत्य के १. शर्मा, राजकुमार--पूर्वोक्त, पृ० २७२-२९२ । २. शास्त्री, परमानन्द-'धारा और उसके जैन सारस्वत' गुरुगोपालदास बरैयास्मतिग्रन्थ ( सागर-१९६७ ई०) प० ५४३-५५२ ३. भाटिया, प्रतिपाल-द परमार्स (नई दिल्ली-१९७० ई०) पृ० २६५ । ४. जिनरत्नकोश, पृ० १६७ । ५. वही, प० ४४४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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