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________________ ३६ जैनधर्म का प्रसार और गोविन्दसरि के प्रभाव में था । इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि गर्जर प्रतिहारों के शासन काल में जैन धर्म फलता-फलता रहा। ___ जहां तक पूर्वी भारत का प्रश्न है, सातवीं शताब्दी में ह्वेनसांम के समय पुण्डवर्धन और समतट में निर्गन्थों ( दिगम्बरों) की संख्या ज्यादा थी२; यद्यपि बहुत से बौद्ध संघाराम और देवालय भी वहां विद्यमान थे । बंगाल में जैन धर्म की लोकप्रियता यद्यपि ह्वनसांग के समयोपरान्त भी बनी रही, किन्तु उसके कुछ समय पश्चात् आठवीं शताब्दी में जैन गतिविधियों के संकेत न तो साहित्यिक प्रमाणों से प्राप्त होते हैं और न ही पुरातात्विक स्रोतों से। इससे कुछ विद्वानों की ऐसी धारणा हुई कि बौद्ध धर्मावलम्बी पालवंश के उदय के साथ ही सातवीं शताब्दी के पश्चात् बंगाल में जैनधर्म का ह्रास होने लगा। परन्तु उक्त धारणा का खंडन नवीं और दसवीं शताब्दी में बंगाल के १. श्रीमदामविहाराख्यतीर्थ नन्तुं ययौ नृपः । तत्र शिष्यद्वयं दृष्टं बप्पभट्ट महामुनेः ।।७६०।। विद्याव्याक्षेपतस्ताभ्यां न चक्रे भूमिपोचितम् । अभ्युत्थानादिसन्मानं श्रीभोजोऽथ व्यचिन्तयत् ।।७६१॥ अज्ञातव्यवहारी हि शिष्यावेती प्रभोः पदे । न युज्यते यतो विश्वे व्यवहारो महत्वभूः ॥७६२॥ श्रीनन्नसूरिराचार्यः श्रीमान् गोविन्द इत्यपि । आहूय पूजितो राज्ञा पट्ट च स्थापितो प्रभोः ।।७६३।। मोढ़ेरे प्रहितो नन्नसूरिः सूरिगुणोन्नतः । पार्वे गोविन्दसूरिश्चावस्थाप्यत नृपेण तु ॥७६४॥ भोजराजस्ततोऽनेकराज्य राष्ट्रग्रहाग्रहः । आमादभ्यधिको जज्ञे जैनप्रवचनोन्नती ।।७६५।। "बप्पट्टिसूरिप्रबन्ध" प्रभावकचरित, पृ० ११० । २. मजुमदार, आर० सी०-'जैनिज्म इन ऐन्शियन्ट बंगाल' महावीर जैनविद्यालयसुवर्णमहोत्सवग्रन्थ ( बम्बई, ई० सन् १९६८) भाग-१, अंग्रेजी खण्ड, प० १३६-१३७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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