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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
ओसिया ( राजस्थान ) के महावीर जिनालय का निर्माण कराया गया । यह बात उक्त जिनालय में उत्कीर्ण वि० सं० १०१३ / ई० सन् ९५६ के एक लेख से ज्ञात होती है। आचार्य जिनसेन, जो वत्सराज के समकालीन थे, ने शक सं० ७०५ / वि० सं० ८४० / ई० सन् ७८३ में हरिवंशपुराण को पूर्ण किया । वत्सराज के पश्चात् उसका पुत्र नागभट्ट 'द्वितीय' ( ई० सन् ८००-८३३ ) गद्दी पर बैठा । जैन प्रबन्ध ग्रन्थों में उसका एक नाम 'आम' भी मिलता है । प्रभावकचरित से ज्ञात होता है कि 'आम' और 'नागावलोक' एक ही थे । उसने जैनाचार्य भट्टिसूरि का सम्मान किया और उनके निर्देश पर कई स्थानों पर जिन मन्दिरों का निर्माण कराया । वत्सराज का उत्तराधिकारी मिहिरभोज ( ई० सन् ८२६-८८५ ) बप्पभट्टिसूरि के शिष्यों नन्नसूरि
१. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, वेस्टनं सर्किल, प्रोग्र ेस रिपोर्ट.. १९०६-०७ ई०,
० १५ ।
२. नाहर, पूरनचन्द -- जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ७८८ ।
३. शाकेष्वब्दशतेषु सप्तसु दिशं पञ्चोत्तरेषूत्तरां पातीन्द्रायुधनाम्नि कृष्णनृपजे श्रीवल्लभे दक्षिणाम् । पूर्वं श्रीमदवन्तिभूभृति नृपे वत्सादिराजेऽपरां सूर्याणामधिमण्डलं जययुते वीरे वराहेऽवति ॥५२॥ कल्याण: परिवर्धमान विपुल श्रीवर्धमाने पुरे श्रीपाश्र्वालयनन्नराजवसतौ पर्याप्तशेषः पुरा ।
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पाश्चाद्दोस्त टिकाप्रजाप्रजनितप्राज्याचं नावर्चने
शान्तेः शान्तगृहे जिनस्य रचितो वंशो हरीणामयम् ॥५३॥ षट्षष्टितमः सर्गः -- हरिवंशपुराण |
२४. नागावलोक इत्याख्यां राज्ञस्तत्र प्रभुदंदी |
ततः प्रभृत्यनेनापि नाम्ना विख्यातिमाप सः ।।१८८ । ।
सद्यूतकृत् तदादायागमद् आमनृपाग्रतः । मुदा मिवेदयामास तच्चमत्कारकारणम् ॥ १८९ ।।
"बप्पभट्टिसूरिप्रबन्ध' - प्रभावकचरित, संपादक - जिनविजय, पृ० ८६
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