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जैनधर्म का प्रसार
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राजा, संवत् प्रवर्तक विक्रमादित्य को जैन आचार्य सिद्धसेन दिवाकर ने जैन धर्म में दीक्षित किया था । विक्रमादित्य के पिता और उज्जयिनी के पूर्ववर्ती शासक गर्दभिल्ल को कालक नामक एक जैनाचार्य ने अपनी साध्वी बहन से दुराचार के कारण शकों की सहायता से पदच्युत कर वहां शक राज्य स्थापित करा दिया। बाद में विक्रमादित्य ने वहां से शकों को हटाकर अपना शासन स्थापित किया । इसी कालकाचार्य को हम प्रतिष्ठान के सातवाहन नरेश के दरबार में देखते हैं, जहां उन्होंने पर्युषणा के पंचमी तिथि को चतुर्थी में बदल दिया । १ उत्तरकालीन जैन साहित्य में इस सम्बन्ध में प्रचुर विवरण प्राप्त होता है । * सांकलिया ने ई० पूर्व दूसरी शती का एक शिलालेख भी पूना के निकट पाल नामक स्थान से हाल में ही प्राप्त किया है जिसका आरम्भ एक जैन मन्त्र से होता है । " तथापि सातवाहनों के साथ जैनों के व्यापक सम्पर्क के प्रमाण अत्यल्प ही हैं
ई० सन् की प्रारम्भिक शताब्दी में जैन संघ का श्वेताम्बर और दिगम्बर आम्नायों में विभाजन एक महत्वपूर्ण घटना थी । इस.
१. इस सम्बन्ध में विस्तार के लिये द्रष्टव्य
[ अ ] नाहटा, अगरचन्द - विक्रमादित्य सम्बन्धी जैन साहित्य [ब] जैन, बनारसीदास - जैन साहित्य में विक्रमादित्य [स] शार्लोटे क्राउझे — जैन साहित्य और महाकाल मंदिर उक्त तीनों लेख पूर्वं ग्वालियर राज्य द्वारा प्रकाशित विक्रम स्मृति ग्रन्थ में मुद्रित हैं ।
[4] Charlotte Krause - Siddhasena Divakara and Vikramaditya, Vikram Volume, Ujjain [ 1948 A. D. ] pp-213-280
२. निशीथचूर्णी, भाग-३ ३. (i) निशीथ चूर्णी, भाग - ३
(ii) कल्पसूत्रवृत्ति-धर्मसागर, पृ० ४
(iii) कल्पसूत्रवृत्ति - विनयविजय, पृ० २७०
४. देव, एस० बी० - पूर्वोक्त, पृ० ९८ ।
५. घोष, ए० – जैन कला और स्थापत्य, खंड १, पृ० ९२ ।
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