SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन हुआ। उनके व्यक्तिगत धर्म के बारे में हमारे पास कोई सूचना प्राप्त नहीं होती। खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख से उनके व्यक्तिगत धर्म के बारे में कुछ आभास मिलता है। इस लेख के अनुसार नन्दों ने कलिंग पर आक्रमण कर वहां से जिन (तीर्थङ्कर) प्रतिमा का अपहरण कर उसे अपने यहां स्थापित किया। इस उल्लेख से यह अनुमान होता है कि नन्द वंश के राजा भी जैन धर्मानुरागी ही थे।' नन्दों को अपदस्थ कर मौर्यों ने मगध की राजसत्ता हस्तगत कर ली। इस वंश का सर्वप्रथम शासक चन्द्रगुप्त मौर्य ( ई० पूर्व ३२४३००) था। दिगम्बर जैन परम्परानुसार इसके शासन काल में मगध में १२ वर्षों का भीषण अकाल पड़ा, उस समय आचार्य भद्रबाहु ने अपने शिष्यों के साथ दक्षिण भारत की ओर प्रस्थान किया, उनमें चन्द्रगुप्त मौर्य भी थे।२ श्वेताम्बर परम्परा में भी मगध में पड़े १२ वर्षीय दुष्काल और भद्रबाहु के वहां से बाहर जाने का उल्लेख है, परन्तु यह परम्परा उनके नेपाल जाने की चर्चा करती है तथा चन्द्रगुप्त मौर्य का उनसे कोई सम्बन्ध नहीं बतलाती । दिगम्बर परम्परा का समर्थन मैसूर प्रान्त के श्रवणबेलगोला १. देव, एस० बी०-पर्वोक्त पृ० ८६-८७ २. (i) मउडधरेसुचरिमो जिणदिक्खं धरदि चंदगुत्तों य । तत्तो मउडधरा दुप्पव्वज्ज व गेण्हंति ॥१४८१॥ तिलोयपणत्ती-यतिवृषभाचार्य, रचनाकाल, ई० सन् छठी शताब्दी, संपादक-आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये एवं हीरालाल जैन, (शोलापुर वि० सं० २०००-२००७) भाग १, चतुर्थमहाधिकार, पृ० ३३८ (ii) भद्रबाहुवचः श्रुत्वा चन्द्रगुप्तो नरेश्वरः । अस्यैव योगिनः पावें दधौ जनेश्वरं तपः ॥३८॥ चन्द्रगुप्तमुनिः शीघ्र प्रथमो दशपूर्विणाम् । सर्वसंघाधिपो जातो विसषाचार्यसंज्ञकः ॥३९॥ 'भद्रबाहुकथानकं'–बृहत्कथाकोश-हरिषेण, रचनाकाल, ई०सं०९३१, संपादक-आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये (सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क १७, बम्बई, वि० सं० १९९९) पृ० ३१७-३१९ ३. तंमि य काले बारस वरिसो दुक्कालो उवद्वितो, संजता इतो इतो य समुद्दतीरे अच्छित्ता पुणरवि पाडलिपुत्ते मिलिता; तेसिं अण्णस्स Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy