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जनधर्म का प्रसार
कर लिया ।' पार्श्वनाथ की श्रमण परम्परा में स्त्रियां भी दीक्षित होती थीं। जैन आगमिक साहित्य में ऐसी अनेक स्त्रियों के नाम भी मिलते हैं। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि महावीर स्वामी के जन्म के समय तक निर्ग्रन्थ धर्म वर्तमान उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ भागों तक फैल चुका था।
भगवान् महावीर को निर्ग्रन्थ धर्म का वास्तविक संस्थापक माना जा सकता है। उन्होंने ७२ वर्ष की उम्र पायी और अपने जीवन के प्रथम ३० वर्ष गृहस्थ रूप में व्यतीत किये तथा शेष ४२ वर्ष विरक्त के रूप में। घर छोड़ने के बाद १२ वर्षों तक उन्होंने वर्तमान उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल के अनेक स्थानों की यात्रा की। १३ वें वर्ष वे जंभियग्राम पहुंचे जहां ऋजुवालिका नदीके तटपर उन्हें कैवल्य प्राप्त हुआ। तत्पश्चात् उन्होंने राजगह और नालन्दा में १४, मिथिला में ६, वैशाली और वणिय ग्राम में ४, भद्दिया नगरी में २ और आलं“भिया, पणियभूमि, 'श्रावस्ती और पावा में १-१ वर्षावास व्यतीत किया । पावा में ही उनका देहान्त हुआ। इस समय तक निर्ग्रन्थ धर्म बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश में अपनी स्थिति दृढ़ कर चुका था। ___ महावीर के समकालीन मगध नरेश बिम्बिसार और अजातशत्रु जैन धर्म से प्रभावित थे। अजातशत्रु का पुत्र उदायी भी एक श्रद्धालु जैनोपासक था । उदायी के पश्चात् मगध में नन्दों का शासन प्रारम्भ १. जैन, जगदीशचन्द्र-भारत के प्राचीन जैन तीर्थ (वाराणसी ई० सन्
१९५७) पृ० ६-७ २. वही, पृ० ७ ३. वही ४. जंभिय बहिः उजुवालिय तीरवियावत्त सामसालअहे । छठेणुक्कुडुयस्स उ उप्पन्नं केवलनाणं ।
आवश्यकनियुक्ति, गाथा ५२५ ५. जैन, जगदीशचन्द्र, पूर्वोक्त, पृ० ८-१३ ६. पावाए णयरीए एक्को वीरेसरो सिद्धो ।
तिलोयपण्णत्ती, अधि० ४, गाथा १२०८ । ७. जैन, जगदीशचन्द्र-पूर्वोक्त, पृ० १३ ८. देव, एस० बी० हिस्ट्री ऑफ जैन मोनाकिज्म, पृ० ८४-८५
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