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जैन तीथों का ऐतिहासिक अध्ययन विस्तृत है। यह उल्लेखनीय है कि जिनप्रभसूरि के युग में जैनधर्म मुख्य रूप से प्रायः इसी क्षेत्र में केन्द्रित था।
जैन धर्म का प्रारम्भिक प्रसार । जैन धर्म भारतवर्ष के अति प्राचीन धर्मों में से एक है। जैन परम्परानुसार २४ तीर्थङ्कर हुए। अन्तिम तीर्थङ्कर महावीर स्वामी ईसा पूर्व छठी शती में हए। आधुनिक विद्वानों ने २३ वें तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ और २४ वें तीर्थङ्कर महावीर को ऐतिहासिक व्यक्तियों के रूप में स्वीकार किया है। शेष तीर्थङ्करों की ऐतिहासिकता संदिग्ध है।
पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी के समय जैन धर्म किन-किन स्थानों पर फैला हआ था, इस सम्बन्ध में हमें जैन आगमों से जानकारी प्राप्त होती है । ज्ञाताधर्मकथा के अनुसार पार्श्वनाथ ने अहिच्छत्र, कौशाम्बी, साकेत, काम्पिल्य, मथरा और राजगह में विहार किया था।२ पार्श्वनाथ के पश्चात् उनके शिष्यों ने उनके धर्म का प्रचार किया। भगवतीसूत्र में तुंगिया नगरी के निवासियों का उल्लेख पार्श्वनाथ के अनुयायियों के रूप में हुआ है। महावीर स्वामी के माता-पिता भी पार्श्वनाथ की परम्परा ही अनुयायी थे।४ उत्पल, मुनिचन्द्र, पेढालपुत्र, केशीकुमार आदि भी पार्श्वनाथ की परम्परा के. ही थे। ये महावीर के समकालीन थे। इनमें से गांगेय, पेढालपुत्र और केशीकुमार ने महावीर के पंचयाम वाले धर्म को स्वीकार १. [i] जाकोबी, हमन- 'जैन सूत्राज' [सेक्रेड बुक्स ऑफ द ईस्ट] जिल्द
XLV, (आक्सफोर्ड, ई०सन् १८९५) इन्ट्रोडक्शन, पृ०xxi [ii] बुहलर, जार्ज-इन्डियन सैक्ट ऑफ द जैनाज (iii) जैन, हीरालाल-भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान,
(भोपाल, १९६२ ई०) पृ० २१ २. मेहता, मोहनलाल और चन्द्रा, के० आर०—प्राकृत प्रापर नेम्स.
(अहमदाबाद, ई० सन् १९७०) भाग १ पृ० ४५३ ३. वही, पृ० ३४३ ४. जैन, हीरालाल-पूर्वोक्त, पृ० २२
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