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जैन तीथों का ऐतिहासिक अध्ययन
उपरोक्त सूची से स्पष्ट है कि ग्रन्थकार ने चतुरशीतिमहातीर्थनाम संग्रहकल्प के अन्तर्गत प्रत्येक तीर्थङ्कर से सम्बन्धित स्थानों का अलगअलग उल्लेख किया है । इस सूची में उल्लिखित कुछ तीर्थ ऐसे हैं जिनकी एक से अधिक बार चर्चा है, इससे यही समझना चाहिए कि एक ही स्थान पर एक से ज्यादा तीर्थङ्करों के जिनालय विद्यमान रहे और यह बात अस्वाभाविक नहीं लगती । उक्त सूची में राजस्थान और गुजरात के तीर्थों की संख्या सर्वाधिक है, इसका कारण यही है कि वे इस क्षेत्र के निवासी थे अतः इन क्षेत्रों से उनका अच्छा परिचय था । दूसरे मध्ययुग में ये प्रान्त श्वेताम्बर जैन धर्म के केन्द्र के रूप में प्रतिष्ठित रहे । उपरोक्त सूची में आये हुए वे तीर्थं जो देश के अन्य भागों में स्थित हैं, उनमें से अधिकांश तीर्थों का ग्रन्थकार ने अपने पूर्वाचार्यों से प्राप्त सूचनाओं और अपनी कल्पना के आधार पर उल्लिखित किया है । " अपने धार्मिक उत्साह और वृद्ध - परम्परा में अत्यधिक श्रद्धा के कारण विश्व के सम्बन्ध में प्रचलित जैन खगोलशास्त्रीय मान्यताओं पर आधारित कुछ भौगोलिक नामों का भी उन्होंने उल्लेख किया है जो पूर्णतया काल्पनिक हैं । तथापि उनकी सूची में उल्लिखित अनेक तीर्थं आज भी जैन केन्द्र के रूप में विद्यमान हैं । इसमें कुछ ऐसे भी तीर्थों का उल्लेख आया है जहाँ प्राचीन काल में जैन केन्द्र होना निर्विवाद है, क्योंकि जैन साहित्यिक प्रमाणों से उनकी सूचना मिलती है, परन्तु आज वहाँ कोई भी जैन पुरावशेष प्राप्त नहीं होता अपितु वहां स्थित जिनालय एवं जिन प्रतिमायें भी वर्तमान युग की हैं । इसी प्रकार इस सूची में कुछ ऐसे भी तीर्थों की चर्चा आयी है जो जैन धर्म के नहीं अपितु अन्य धर्मों के तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध हैं, साथ ही साथ जैन साहित्य में अन्यत्र उनकी चर्चा भी नहीं मिलती, ऐसी स्थिति में वहां किसी जिनालय का होना असंभव तो नहीं परन्तु संदिग्ध अवश्य लगता है । इस सूची में ऐसे भी तीर्थों का नामोल्लेख है जिनकी भौगोलिक स्थिति भी अज्ञात है । इसी प्रकार इस सूची में देश के बाहर स्थित कुछ तीर्थों की भी चर्चा आयी है । चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रहकल्प के अन्तर्गत प्रायः उन सभी तीर्थों का नामोल्लेख हुआ है, जिन पर कल्परूप में विवरण प्राप्त होता है । परन्तु कल्प के रूप में ही वर्णित कुछ ऐसे भी तीर्थ हैं, जिनका इस
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