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जैन तीथों का ऐतिहासिक अध्ययन
महावीरगणधरकल्प, समवशरण कल्प, वस्तुपाल तेजपाल कल्प, अम्बिकादेवीकल्प और व्याघ्रीकल्प निकाल देने पर कुल ४०-४१ तीर्थ ही बचते हैं। उनमें से भी अष्टापदतीर्थ धर्मघोषसूरि द्वारा और कन्यानयन महावीरकल्पपरिशेष विद्यातिलकसूरि द्वारा रचित हैं। इसी प्रकार कन्यानयनीय महावीरप्रतिमाकल्प मुनीश्वरसूरि ने लिखा है ।
उपरोक्त कल्पों में चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रहकल्प अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । इसमें २४ तीर्थङ्करों से सम्बन्धित स्थानों का उल्लेख किया गया है, जो इस प्रकार हैं
१ - आदिनाथ
२- अजितनाथ
३- सम्भवनाथ
४ - अभिनन्दनदेव
५ - सुमतिनाथ
६—पद्मप्रभ ७ - सुपार्श्वनाथ
८ - चन्द्रप्रभ
९ - सुविधनाथ
१० - शीतलनाथ
११- श्रेयांसनाथ
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काशहृद, पारस्कर, अयोध्या, कोल्हापुर, सूर्पारक, नगरमहास्थान, दक्षिणापथ गोम्मटेश्वर बाहुबलि, उत्तरापथ का कलिंगदेश, खङ्गारगढ़, महानगरी, पुरिमताल, तक्षशिला, मोक्षतीर्थ, कोल्लपाकपत्तन, गङ्गायमुनासंगम |
अयोध्या, चन्देरी, तारण (तारंगा ), अंगदिका ।
श्रावस्ती |
गमतीग्राम |
क्रौंचद्वीप, सिंहलद्वीप, हंसद्वीप,
अम्बुरिणीग्राम |
माहेन्द्रपर्वत और कौशाम्बी ।
दशपुर और मथुरा 1
प्रभास, वलभी, नासिक्य, चन्द्रावती और वाराणसी ।
कायाद्वार ।
प्रयाग ।
विन्ध्याचल, मलयगिरि ।
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