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________________ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन १९ पर अनुमानित किया जा सकता है। जैसे सत्यपुरतीर्थकल्प वि० सं० १३६७ के बाद कभी लिखा गया । अर्बुदगिरिकल्प वि० सं० १३७८ के उपरान्त रचा गया और कन्यानयनीयमहावीरप्रतिमाकल्प वि० सं० १३८५ के उपरान्त संभवतः वि० सं० १३८८-८९ में लिखा गया। इस कल्प का पूरक कन्यानयमहावीरकल्पपरिशेष तो उनके देहान्त के पर्याप्त समय बाद लिखा गया प्रतीत होता है। इसे उनके विद्याशिष्य संघतिलकसरि के पट्टधर विद्यातिलक अपरनाम सोमतिलक ने रचा जिनके कुमारपालप्रबन्ध का रचना काल वि० सं० १४२४/ई० सन् १३६७ है। इस प्रकार स्पष्ट है कि कल्पप्रदीप के विभिन्न कल्पों की रचना वि० सं० १३६४ से वि० सं० १३८९ तक लगभग २५ वर्षों के बीच की गयी। दो-चार कल्प वि० सं० १३६४ के पूर्व भी रचित हो सकते हैं । रचना स्थलों में शत्रुञ्जयकल्प और कन्यानयनीयमहावीरप्रतिमाकल्प दिल्ली में रचे गये प्रतीत होते हैं । अपापाबृहत्कल्प देवगिरि में रचा गया और 'हस्तिनापुरस्तव' हस्तिनापुर में। शेष कल्पों के रचनास्थान के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं मिलती। __ जैसा कि पहले ही कहा गया है इस ग्रन्थ में प्रशस्ति को छोड़कर कुल ६२ कल्प हैं, जिनमें से तीर्थविषयक कल्प इस प्रकार हैं १-अणहिलपुरस्थितअरिष्टनेमिकल्प २-अपापापुरीकल्प ३ -अयोध्यापुरीकल्प ४-अर्बुदाद्रिकल्प ५-अवन्तिदेशस्थअभिनन्दनदेवकल्प ६-अश्वावबोधकल्प ७-अष्टापदगिरिकल्प ८-अहिच्छत्रानगरीकल्प ९-आमरकुण्डपद्मावतीदेवीकल्प १०-उर्जयन्त (रैवतक) कल्प ११ - कन्यानयनीयमहावीरप्रतिमाकल्प १२-कलिकुण्डकुक्कुटेश्वरकल्प १३-काम्पिल्यपुरकल्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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