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________________ ग्रन्थकार और ग्रन्थ का परिचय के कई मुनियों को विद्यादान दिया जिनमें हर्षपुरीयगच्छ के आचार्य श्रीतिलकसूरि के शिष्य राजशेखरसूरि, रुद्रपल्लीयगच्छ के आचार्य पद्मशेखर के शिष्य संघतिलकसूरि, नागेन्द्रगच्छीय मल्लिसेन सूरि आदि प्रमुख थे। एक बार आचार्य जिनप्रभसूरि विहार करते हुये दिल्ली पहुँचे, वहां आप की ख्याति सुनकर सुल्तान मुहम्मद तुगलक ने अपने दरबार में आपको निमंत्रित किया। इनका वि०सं० १३८५ पौष शुक्ल द्वितीया आचार्यश्री को सुल्तान से मिले । उसने इनका बड़ा सत्कार किया और उपहार आदि भेंट किया। अवसर देखकर सूरिजी ने सुल्तान से तीर्थ रक्षा का फरमान मांगा, जो सहज ही प्राप्त हो गया। इस प्रकार इन्होंने सुल्तान पर अपना प्रभाव स्थापित कर समस्त जैन तीर्थों और जैन संघों को मुस्लिम अत्याचारों से मुक्त कराया। सुल्तान ने इन्हें अपने महल के पास ही उपाश्रय भी प्रदान किया। आचार्यश्री प्रायः सुल्तान दरबार में पधारते, वहां इनके द्वारा विभिन्न अवसरों पर अनेक चमत्कारों के प्रदर्शन का भी उल्लेख मिलता है।" आपने दक्षिण भारत (महाराष्ट्र प्रान्त) की यात्रा हेतु जिनदेवसूरि को १४ अन्य शिष्यों के साथ दिल्ली में ही रहने का आदेश दिया और स्वयं संघ के साथ महाराष्ट्रमंडल के लिये प्रस्थान किया। स्थान-स्थान पर श्रावकों द्वारा प्रवेश महोत्सव का आयोजन कराया गया। मार्ग में स्थित तीर्थों की यात्रा करते हुये आप महाराष्ट्रमंडल पहुंचे जहां संघपति जगसिंह, साहण, मल्लदेव आदि ने आपका स्वागतः किया। इसके बाद ये लोग प्रतिष्ठानपूर की यात्रा पर गये और वहां से दौलताबाद पहुंचे जहां इन्होंने ( सूरि ने ) साहु पेथड़, साहु सहजा १. विनयसागर, पूर्वोक्त पृ० ३७ । २. विविधतीर्थकल्प पृ० ४५-४६ । ३. वही, पृ० ४५.४६ ।। ४. वही, पृ० ४५-४६ । ५. प्रबन्धपञ्चशती पृ० २.३, खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली पृ० ९४-९६ ।। ६. विविधतीर्थकल्प पृ० ९६-९७ । ७. वही, पृ० ९५-९६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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