________________
विषय प्रवेश
द्वारा किये गये तीर्थयात्रादि का विवरण प्राप्त होता है, परन्तु आचार्य के प्रारम्भिक जीवन आदि के बारे में इन रचनाओं से कोई जानकारी नहीं मिलती।
उपदेशसप्तशती में भी आचार्य के जीवन से सम्बन्धित कुछ घटनाओं की चर्चा है। प्रबन्धपञ्चशती में आचार्य द्वारा समय-समय पर प्रकट किये गये चमत्कारों का ही विवरण है। परन्तु वृद्धाचार्यप्रबन्धावली में उनके प्रारम्भिक जीवन, दीक्षा, विद्याध्ययन, आचार्यपद प्राप्ति एवं चमत्कारों का विस्तृत विवरण मिलता है।
वृद्धाचार्यप्रबन्धावली के अनुसार आचार्य जिनप्रभ का बाल्यकाल का नाम सुभटपाल था। इनके पिता का नाम रत्नपाल और दादा का नाम महीधर था, जो मोहिलवाड़ी नगरी के निवासी, श्रीमालगोत्रीय और ताम्बवंशीय श्रावक थे। सुभटपाल अपने माता-पिता के सबसे छोटे सन्तान थे। वि. सं. १३२६ में खरतरगच्छ की लघुशाखा के प्रथम आचार्य जिनसिंहसरि से इन्होंने दीक्षा ली, उस समय इनकी आयु मात्र ८ वर्ष की थी। इस आधार पर यह माना जा सकता है कि वि. सं. १३१८ के लगभग इनका जन्म हआ था। दीक्षा प्राप्ति के उपरान्त इन्होंने जैन साहित्य, दर्शन, अलङ्कार, छन्द, व्याकरण, कोष आदि का अच्छा अध्ययन किया। इन्होंने अपने दीक्षागुरु जिनसिंहसरि के पास ही उपरोक्त सभी विषयों का अध्ययन किया या भिन्न-भिन्न आचार्यों के पास, यह स्पष्ट नहीं होता। वि. सं. १३४१ में जिनप्रभसूरि के नाम से ये अपने गुरु के पट्टधर हुए।
आचार्य जिनप्रभ विद्याप्रचार के बड़े प्रेमी थे। विद्यादान के सम्बन्ध में ये ऊंच-नीच, गच्छ सम्प्रदाय, जैन-अजैन आदि का कोई भी भेद नहीं रखते थे बल्कि समभाव से सभी को विद्यादान देते थे। स्वयं खरतरगच्छ के एक अग्रगण्य आचार्य होते हुये भी इन्होंने अन्य गच्छों
१. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली पृ० ९४-९५ । २. महोपाध्याय विनय सागर-शासन प्रभावक आचार्य जिनप्रभ और
उनका साहित्य (जयपुर, १९७५ ई०), पृ० ३३ ।। ३. वही, पृ० ३६-३९ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org