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________________ अध्याय ग्रन्थकार और ग्रन्थ का परिचय कल्पप्रदीप के रचनाकार आचार्य जिनप्रभसूरि का संक्षिप्त जीवन परिचय जिनप्रभसूरि १४ वीं शती के श्रेष्ठ विद्वान् और एक प्रभावशाली जैन आचार्य थे । इनके जीवन से सम्बन्धित घटनाओं का जिन - रचनाओं में उल्लेख मिलता है, वे इस प्रकार हैं : :-- १ १ – कन्यानयनीयमहावीरप्रतिमाकल्प ' २ - कन्यानयनीय महावीरप्रतिमाकल्पपरिशेष ३ – जिनशासनप्रभावनायां श्रीजिनप्रभसूरिप्रबन्ध - R ४ -- जिनप्रभसूरिभिः पीरोजसुरत्राणः प्रतिबोधितसम्बन्धः ४ ५ - वृद्धाचार्य प्रबन्धावली " Jain Education International ३ इनमें प्रथम दो रचनायें जिनप्रभसूरि के शिष्यों द्वारा लिखी गयी हैं । इनमें आचार्य का सुल्तान के सम्पर्क में आने और तत्पश्चात् उनके १. विविध तीर्थकल्प पृ० ४५-४६ २. वही, पृ० ९५-९६ ३. उपदेशसप्तति — रचनाकार, सोमध मंगणि [ रचनाकाल - वि० सं० १५३०] संपादक – मोहनलाल अमृतलाल संघवी (प्रकाशक - जैन सस्तु साहित्य ग्रन्थमाला, अहमदाबाद, वि० सं० १९९८] पृ० ४९-५१ । ४. प्रबन्धपञ्चशती - रचनाकार- - शुभशील गणि (रचनाकाल वि०सं० की १५ वीं शती ) संपादक – श्री मृगेन्द्र मुनि, (प्रकाशक - सुवासित सदन, सूरत, ई० सन् १९६८) पृ० १७५ । ५. जिनविजय मुनि - संपा० खरतरगच्छ बृहद्गुर्वावली (सिंघी जैन ग्रन्थमाला-ग्रन्थाङ्क ४२, बम्बई १९५६ ई०) पृ० ९४-९६ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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