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विषय प्रवेश
९ - मुनि जयन्तविजय
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१० – मुनि विशालविजय -
अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह ' अर्बुदाचलप्रदक्षिणा जैनलेखसंदोह राधनपुरजनले खसंदोह
११ - मुनि बुद्धिसागर
१२ - महोपाध्याय विनयसागर - प्रतिष्ठालेख संग्रह "
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जैनधातु प्रतिमालेखसंग्रह भाग१-२४
१. विजयधमंसूरि ग्रन्थमाला, उज्जैन, वि० सं० १९९४ २. यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर, वि० सं० २००५ ३. वही, वि० सं० २०१६
४. श्रीअध्यात्म ज्ञान प्रसारक मंडल, मुम्बई, वि० सं० १९७३
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उक्त संकलन अत्यन्त उपयोगी हैं । इनसे जैन श्रावकों द्वारा तीर्थों पर सम्पन्न कराये गये निर्माण, पुनर्निर्माण एवं दानादि दिये जाने, समकालीन राजाओं आदि के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है । (२) जैन पुरावशेष
प्राचीन जिनालयों एवं प्रतिमाओं के अवशेष भी तीर्थों के इतिहास के स्रोत के रूप में आधारभूत सामग्री प्रस्तुत करते हैं । प्राचीन, पूर्वमध्ययुगीन एवं मध्ययुगीन अनेक जिनालय जो आज विद्यमान हैं उनसे उस तीर्थ की प्राचीन स्थिति यथा - निर्माण, मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा उसका भंग, श्रद्धालु श्रावकों द्वारा उसका पुनर्निमार्ण आदि के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है । किसी भी मंदिर के स्थापत्यकला को देखकर भिन्न-भिन्न कालों में उसकी स्थिति का आकलन किया जाता है । इसी प्रकार जिन ( तीर्थङ्कर) प्रतिमाओं की निर्माण शैली के आधार पर उनकी प्राचीनता का आकलन होता है । उत्तर प्रदेश में मथुरा की जैन कलाकृतियाँ, श्रावस्ती का सोभनाथ मंदिर, बिहार में राजगिरि की पहाड़ियों पर स्थित जैन - मंदिर के पुरावशेष, राजस्थान एवं गुजरात के अनेक नगरों में स्थित प्राचीन एवं अर्वाचीन जिनालय भी अपने आप में तीर्थों के इतिहास के एक प्रमुख स्रोत हैं ।
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५. सुमति सदन, कोटा [ राजस्थान ] ई० सन् १९५३
६. घोष, अमलानन्द संपा० जैन कला और स्थापत्य खंड १ - ३ के विभिन्न
अध्याय ।
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