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जैन तीर्थो का ऐतिहासिक अध्ययन २-पुरातात्त्विक साक्ष्य
तीर्थों के इतिहास के स्रोत के रूप में जिन पुरातात्त्विक साक्ष्यों का उल्लेख किया जा सकता है, उन्हें दो श्रेणियों में बांटा गया है
(१) आभिलेखिक साक्ष्य
(२) जैन पुरावशेष (१) आभिलेखिक साक्ष्य
इतिहास के निर्माण में अभिलेखों का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है । तीर्थों के इतिहास के सम्बन्ध में भी यही बात कही जा सकती है। जैन धर्म के दोनों सम्प्रदायों से सम्बन्धित अबतक अनेक अभिलेख प्राप्त हुए हैं और उनमें से अधिकांश प्रकाशित भी हो चुके हैं। इन सम्प्रदायों से सम्बन्धित अभिलेख प्रायः अलग-अलग संकलनों में प्रकाशित हैं, इनका विवरण इस प्रकार है -
१-नाहर, पूरनचन्द- जैनलेखसंग्रह भाग १-३ २-मुनिजिनविजय- प्राचीनजैनलेखसंग्रह भाग १-२ ३-जैन, छोटेलाल
जैनप्रतिमायन्त्रलेखसंग्रह ४-विजयधर्मसूरि
प्राचीनलेखसंग्रह भाग १-२ ५-जैन, हीरालाल तथा अन्य
जैनशिलालेखसंग्रह" भाग १-५ । ६-मुनिकान्तिसागर--- जैनधातुप्रतिमालेख ७-लोढा, दौलतसिंह- श्री जैनप्रतिमालेखसंग्रह ८-नाहटा, अगरचन्द-- बीकानेरजैनलेखसंग्रह. .
एवं भंवरलाल १. कलकत्ता, ई० सन् १९१७.२९ २. श्री जैन आत्मानंद सभा, भावनगर ई० सन् १९२१ ३. पुरातत्त्वान्वेषणी जैन परिषद, कलकत्ता, ई० सन् १९२३ ४. यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर, ई० सन् १९२७ ५. माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला में प्रकाशित १. श्री जिनदत्तसूरि ज्ञान भंडार, सूरत, ई० सन् १९५० ७. यतीन्द्र साहित्य सदन, धामणिया, मेवाड़, ई० सन् १९५१ ८. नाहटा ब्रदर्स, कलकत्ता, ई० सन् १९५१
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