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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
इसी क्रम में अहमदाबाद से सेठ आनन्दजी कल्याणजी की पेढ़ी से सन् १९५३ में पं० अम्बालाल प्रेमानन्द शाह द्वारा लिखित जैन तीर्थ सर्व संग्रह नामक एक विशाल ग्रन्थ २ भागों ( ३ जिल्दों, भाग १ - खण्ड १ और खण्ड २ तथा भाग २ ) में प्रकाशित हुआ इसमें देश के विभिन्न भागों में स्थित प्रायः सभी प्रमुख तीर्थों के बारे में प्राचीन परम्परा, तीर्थ के निर्माण, जीर्णोद्धार तथा सम्बन्धित घटनाओं एवं वर्तमान स्थिति की चर्चा की गयी है । इसके अलावा देश के प्रायः सभी छोटे-बड़े जैन तीर्थों की सूची भी दी गयी है जिस में लगभग ४४०० तीर्थों का उल्लेख है ।
जैन संस्कृति संशोधन मण्डल, वाराणसी की ओर से सन् १९५२ में डा. जगदीशचन्द्र जैन द्वारा लिखित 'भारत के प्राचीन जैन तीर्थ " नामक एक लघु ग्रन्थ प्रकाशित किया गया। इसमें देश के प्रायः सभी भागों में स्थित प्राचीन जैन तीर्थों का संक्षिप्त परन्तु प्रामाणिक विवरण प्रस्तुत किया गया है ।
दिगम्बर परम्परा में भी जैन तीर्थों पर कुछ प्रशंसनीय कार्य हुये हैं । इस सम्बन्ध में पं० नाथूराम प्रेमी द्वारा लिखे गये तीन निबन्ध हमारे तीर्थक्षेत्र, दक्षिण के तीर्थक्षेत्र और तीर्थों के विवाद अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं ।' जैन संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर ( महाराष्ट्र ) से भी सन् १९६५ में तीर्थवन्दनसंग्रह नामक ग्रंथ प्रकाशित हुआ, इसमें छठीं शती से लेकर १९वीं शती तक के दिगम्बर जैन ग्रन्थकारों द्वारा रचित तीर्थक्षेत्र के विवरणों को संकलित किया गया है । वीरनिर्वाण के २५०० वें वर्ष में अखिल भारतीय दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी की ओर से भारतीय ज्ञानपीठ के तत्त्वावधान में पं० बलभद्र जैन द्वारा लिखित भारतवर्ष के दिगम्बर जैन तीर्थ नामक ग्रन्थ चार भागों में प्रकाशित किया गया । इसी प्रकार मद्रास की श्वेताम्बर जैन संस्था ने भी सन् १९७९ ई० में तीर्थ दर्शन नामक एक विशाल एवं सचित्र ग्रन्थः दो भागों में प्रकाशित किया । अन्तिम दोनों ग्रन्थ मुख्य रूप से जैन समाज को तीर्थ यात्रा के सम्बन्ध में मार्ग दर्शन देने हेतु ही लिखे गये हैं.
१. प्रेमी, नाथूराम – जैन साहित्य और इतिहास पृ० १८५ - २३९ ॥
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