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________________ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन ४-अनुयोगग्रन्थ निर्माण । ५–गर्दभ राजा का उल्लेख । ६–प्रतिष्ठानपुर जा कर वहाँ सातवाहन की विनन्ती से पर्युषणा पर्व की तिथि जो पंचमी थी, उसके बजाय चतुर्थी करना। ७--अविनीतशिष्यपरिहार और सुवर्णभूमिगमन । मुनि कल्याणविजय ने दो कालकाचार्य होने की बात कही है और बताया है कि प्रथम दो घटनायें प्रथम कालक से सम्बन्धित हैं और ३-७ तक की घटनायें द्वितीय कालक से।' परन्तु यू०पी० शाह ने मुनि जी के उक्त मत का खंडन किया है और यह सिद्ध किया है कि एक से ज्यादा कालकाचार्य की उपस्थिति की समस्या बाद के ग्रन्थकारों के कारण और कालगणनाओं में होने वाली गड़बड़ के कारण खड़ी हुई है और वास्तव में एक ही कालकाचार्य हुए, ऐसा उनका स्पष्ट मत है। अब प्रश्न उठता है कि कालकाचार्य किस सातवाहन राजा के समकालीन थे? बहत्कल्पभाष्य और आवश्यकचूर्णी के अनुसार नहपान ( शक नरेश) और सातवाहनों में संघर्ष हुआ था और गौतमीपुत्र सातकर्णी ने नहपान के सिक्कों पर अपनी मुहर लगायी, अतः नहपान को जीतने वाला सातवाहनराजा कालक के समकालीनसातवाहन नरेश के बाद का है। शाह का मत है कि कालक का समकालीन सातवाहन राजा ईस्वी पूर्व प्रथम शती के अन्तिम चरण या ईस्वी सन् के प्रथम चरण में हुआ होगा। परन्तु जिनप्रभसूरि के अनुसार यह घटना वीरनिर्वाणसम्वत् ९९३/वि० सं० ४६६ में घटित हुई। इस सम्बन्ध में मुनि श्रीकल्याण विजय का मत है कि बारहवीं सदी में चतुर्थी की फिर पंचमी करने की प्रथा हुई, तब चतुर्थी पर्युषणा को अर्वाचीन ठहराने के ख्याल से किसी ने यह गाथा रची;५ जिसे परवर्ती ग्रन्थकारों ने, जिनमें जिनप्रभसूरि भी हैं, स्वीकार कर लिया। १. मुनि कल्याणविजय, "आर्यकालक" द्विवेदी अभिनन्दन ग्रन्थ, ( नागरी प्रचारिणी सभा, काशी सं० १९९० ) पृ० ११५ । २. शाह-पूर्वोक्त, पृ० ३१ । ३. वही, पृ० ५० । ४. वही, पृ० ५० । ५. मुनि कल्याणविजय-वीरनिर्वाण सम्वत् और जैन कालगणना, पृ० ४६-४८, पादटिप्पणी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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