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________________ जैनतीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन २७३ सातवाहनों की उत्पत्ति सम्बन्धी जिनप्रभसूरि का जो विवरण है, आधुनिक विद्वानों ने उसे पूर्णतः अनैतिहासिक बतलाया है।' इसी प्रकार सातवाहननपचरित्र में अनेक असम्भव बातों का भी उल्लेख आया है जिसे स्वयं जिनप्रभसूरि ने भी स्वीकार नहीं किया है। ऐसी परिस्थिति में इन दो कल्पों की चर्चा यहीं छोड़ते हुए, केवल प्रतिष्ठानपत्तनकल्प का ही अध्ययन प्रस्तुत किया जा रहा है। इसकी प्रमुख बातें इस प्रकार हैं महाराष्ट्र जनपद के अन्तर्गत गोदावरी नदी के तट पर प्रतिष्ठान नगरी बसी हुई है। यहाँ ६८ लौकिक तीर्थ हैं। यह ५२ वीरों का भी स्थान है, जिससे यह 'वीर क्षेत्र के रूप में भी प्रसिद्ध है। यहाँ से ६० योजन चलकर मुनिसुव्रतस्वामी जितशत्रु राजा के अश्व को प्रतिबोधित करने भृगुकच्छ गये । यहाँ सातवाहन आदि नरेश हुए। सातवाहन नरेश के आग्रह पर कालकाचार्य ने इन्द्रमह के अवसर पर प!षणा की पंचमी की तिथि को चतुर्थी में बदल दिया। वीरनिर्वाण सम्वत् ९९३ में यह घटना हुई । यहीं के राजा के अनुरोध पर कपिल, आत्रेय, बृहस्पति और पांचाल ने अपने बनाये हुए चालीस श्लोक परिमाण वाले ग्रन्थों को एक श्लोक में पद्यबद्ध कर दिया। यहाँ मुनिसुव्रत का एक भव्य जिनालय है, जिसमें मूलनायक के साथ-साथ अम्बिका देवी, क्षेत्रपाल और कपर्दीयक्ष की भी प्रतिमायें स्थापित हैं।" __ प्रतिष्ठान नगरी को महाराष्ट्र प्रान्त के औरंगाबाद जिलान्तर्गत गोदावरी के तट पर स्थित पैठन नामक स्थान से समीकृत किया जाता है । ग्रन्थकार ने यहाँ के जिन ६८ लौकिक तीर्थों का उल्लेख किया है, वे जैन धर्म के प्रतिद्वन्दी ब्राह्मणीय और बौद्ध धर्म से सम्बन्धित रहे १. पाण्डेय, चन्द्रभान–आन्ध्र-सातवाहन साम्राज्य का इतिहास, पृ० ६ और आगे; वेदालंकार, हरिदत्त-प्राचीन भारत का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास, पृ० २२६ और आगे २. डे, नन्दोलाल - ज्योग्राफिकल डिक्शनरी ऑफ ऐन्शेण्ट एण्ड मिडुवल इंडिया, पृ० १५९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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