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________________ २७२ दक्षिण भारत के जैन तीर्थ जिनालय को पुनर्निर्मित करा दिया। यह कार्य १३ वीं शताब्दी के पूर्व ही सम्पन्न हुआ होगा ! ___ ऐसे संकेत हैं कि १३वीं शती में महामात्य वस्तुपाल-तेजपाल' और १४वीं शती में झांझण के पुत्र पेथड़शाह ने यहाँ जिनालयों का निर्माण कराया। जिनप्रभसूरि ने वस्तुपाल और तेजपाल तथा पेथड़शाह द्वारा तीर्थों पर जिन भवनों के निर्माण तथा जीर्णोद्धार का अपने ग्रंथ में उल्लेख किया है, परन्तु उनके द्वारा नासिक में कराये गये जिनालयों के निर्माण का उन्होंने कोई उल्लेख नहीं किया है, जो आश्चर्यजनक है। ४. प्रतिष्ठानपत्तनकल्प प्राचीन भारतवर्ष की एक प्रसिद्ध नगरी और सातवाहनों की राजधानी के रूप में प्रतिष्ठान का अत्यधिक महत्त्व रहा है। ब्राह्मणीय, बौद्ध और जैन साहित्य में इस नगरी का सुन्दर विवरण प्राप्त होता है। जिनप्रभसूरि ने कल्पप्रदीप के अन्तर्गत इस नगरी से सम्बन्धित ३ कल्प लिखे हैं, जो इस प्रकार हैं १. प्रतिष्ठानपत्तनकल्प २. प्रतिष्ठानपुरकल्प ३. प्रतिष्ठानपुराधिपतिसातवाहननृपचरित्र प्रतिष्ठापत्तनकल्प के अन्तर्गत इस नगरी से सम्बन्धित मान्यताओं की चर्चा है। प्रतिष्ठानपुरकल्प के अन्तर्गत सातवाहनवंश की उत्पत्ति की और इसी प्रकार तीसरे कल्प में, जैसा कि उसके नाम से ही स्पष्ट है, सातवाहननरेश का चरित्र वर्णित किया गया है। जहाँ तक १. ढाकी, मधुसूदन तथा शास्त्री, हरिशंकर प्रभाशंकर-"वस्तुपाल तेजपालनी कीर्तिनात्मक प्रवृत्तिओ" स्वाध्याय अंक ४, खंड ३, पृ० ३०५-२० । २. देसाई, मोहनलाल दलीचन्द-जैनसाहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० ४०५ । ३. द्रष्टव्य-कल्पप्रदीप के अन्तर्गत 'शत्रुजयकल्प', 'कन्यानयनमहावीर कल्पपरिशेष, ‘वस्तुपाल-तेजपाल मंत्रिकल्प' आदि । Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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