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पश्चिम भारत के जैन तीर्थ शीलाङ्काचार्यकृत चउपन्नमहापुरुषचरियं ( वि० सं० ९२५/ई० सन् ८६८ ), मलधारगच्छीय हेमचन्द्रसूरि द्वारा रचित नेमिनाहचरिय ( १२वीं शती का उत्तरार्ध), कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्यकृत त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र (वि० सं० १२१४-२८ के मध्य ), मलधारगच्छीय देवप्रभसूरिकृत पांडवचरितमहाकाव्य (वि० सं० १२७० ई० सन् १२१३ के पश्चात् ) आदि ग्रन्थों में भी उक्त कथानक प्राप्त होता है, परन्तु वहाँ शंखपुर नहीं अपितु आनन्दपुर नामक नगरी के बसाने का उल्लेख है। जिनप्रभसूरि के उक्त कथानक का आधारभूत ग्रन्थ कौन-सा है ? वे स्वयं इसे गीत के आधार पर उल्लिखित बतलाते हैं
संखपुर द्विअमुत्ती कामियतित्थं जिणेसरो पासो । तस्सेस मए कप्पो लिहिओ गीयाणुसारेण ॥
कल्पप्रदीप अपरनाम विविधतीर्थकल्प-पृ० ५२ यह गीत कौन-सा था ? उसके रचनाकार का समय क्या था ? यह ज्ञात नहीं। शंखेश्वर महातीर्थ को मुंजपुर से दक्षिण-पश्चिम में सात मील दूर राधनपुर के अन्तर्गत स्थित 'शंखेश्वर' नामक ग्राम से समीकृत किया जाता है। ग्राम के मध्य में भगवान् पार्श्वनाथ का ईंटों से निर्मित एक प्राचीन जिनालय है, जो अब खण्डहर के रूप में विद्यमान है। इसी के निकट एक नवीन जिनालय का भी निर्माण कराया गया है।
जयसिंह सिद्धराज के मंत्री दण्डनायक सज्जन को यहाँ स्थित पार्श्वनाथ चैत्यालय के जीर्णोद्धार कराने का श्रेय दिया जाता है। यह कार्य वि० सं० ११५५ के लगभग सम्पन्न हुआ माना जाता है। यद्यपि समकालीन ग्रंथों में इस बात की कहीं चर्चा नहीं मिलती,परन्तु पश्चात्
१. मुनि जयन्तविजय-शंखेश्वरमहातीर्थ, पृ० ३२ २. बर्जेस एण्ड कजिन्स—द आर्किटेक्चरल ऐन्टीक्वीटीज ऑफ नार्दन
गुजरात ( वाराणसी-१९७५ ई० ), पृ० ९४-९५ । ३.. वही, पृ० ९५ ।
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