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________________ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन २५५ २०. शंखेश्वरपार्श्वनाथकल्प शंखपुर श्वेताम्बर जैनों का एक प्रसिद्ध तीर्थ है। श्वेताम्बर जैन साहित्य में इसके बारे में विस्तृत विवरण प्राप्त होता है । जिनप्रभसूरि ने भी इस तीर्थ का उल्लेख किया है और इसके सम्बन्ध में प्रचलित मान्यताओं की चर्चा की है। उनके विवरण की प्रमुख बातें इस प्रकार हैं "पूर्व काल में एक बार राजगह नगरी के राजा नवें प्रतिवासुदेव जरासन्ध ने नवें वासूदेव कृष्ण पर चढ़ाई करने के लिये पश्चिम दिशा की ओर प्रस्थान किया। उसके आगमन का समाचार सुनकर कृष्ण भी अपनी सेना के साथ द्वारका से चले और राज्य की सीमा पर आ कर डट गये । वहीं पर अरिष्टनेमि ने अपना पाञ्चजन्य नामक शंख बजाया, जिससे वह स्थान शंखपुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। जब दोनों पक्षों में युद्ध प्रारम्भ हुआ तब जरासन्ध ने कृष्ण की सेना में महामारी फैला दी, जिससे उनकी सेना हारने लगी। इसी समय अरिष्टनेमि की सलाह पर कृष्ण ने तपस्या की और पातालस्थित भावी तीर्थङ्कर भगवान् पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्राप्त की। फिर उस प्रतिमा को न्हवण कराया गया और उसी जल को सेना पर छिड़क दिया गया, जिससे महामारी शान्त हुई और उन्होंने जरासन्ध को पराजित कर मार डाला । पार्वनाथ की उक्त प्रतिमा वहीं ( शंखपुर में ) स्थापित कर दी गयी। कालान्तर में यह तीर्थ विच्छिन्न हो गया तथा यह प्रतिमा बाद में वहीं शंखकप में प्रकट हुई और उसे चैत्य निर्मित कर वहीं स्थापित कर दी गयी। इस तीर्थ में अनेक चमत्कारिक घटनायें घटित हुईं। तुर्क लोग भी यहाँ उपद्रव नहीं करते हैं।" ___ शंखेश्वर पार्श्वनाथ के बारे में जिनप्रभसूरि ने जो विवरण प्रस्तुत किया है, वैसा ही विवरण उपके शगच्छीय कक्कसूरि द्वारा रचित नाभिनन्दनजिनोद्धारप्रबन्ध' ( रचनाकाल वि० सं० १३९३ ) में भी प्राप्त होता है। पश्चात्कालीन अन्य ग्रन्थों में भी यही बात कही गयी है। १. प्रस्ताव ५, श्लोक २४३-२५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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