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________________ २३२ पश्चिम भारत के जैन तीर्थ प्रतिष्ठित करायी। यह कार्य वि०सं० १२२२/ई० सन् ११६५ में सम्पन्न कराया गया । पुरातनप्रबन्धसंग्रह के अनुसार गद्दी पर बैठने के पश्चात् अजयपाल ने कुमारपाल द्वारा निर्मित जिनालयों को ध्वस्त कराना प्रारम्भ कर दिया। एक के बाद एक मन्दिर तोड़े जाने लगे। जब तारङ्गा के मन्दिर को तोड़ने का क्रम आया तब आम्मड़ नामक एक मुख्य श्रेष्ठी ने जैन संघ को एकत्र किया और अजयपाल के सम्मुख जाकर उससे जिनालयों की रक्षा करने की प्रार्थना की। शीलनाग नामक एक अधिकारी ने भी जैनों की सहायता की तथा युक्तिपूर्वक तारङ्गा के मन्दिरों को ध्वस्त होने से बचाया। प्रबन्धचितामणि में भी इस जिनालय की युक्तिपूर्वक रक्षा करने का उल्लेख मिलता है। इस जिनालय के सिंहद्वार के पास एक विशाल अग्रमंडप को वस्तुपाल द्वारा वि० सं० १२८५ में निर्मित कराया गया, इस आशय का लेख यहाँ विद्यमान है ।" आबू स्थित लूणवसही के वि० सं० १२९६ के लेख १. प्रभावकचरित "हेमचन्द्रसूरिचरितम्', पृ० २०७ । २. बर्जेस एण्ड जिन्स-आर्किटेक्चरल टेम्पुल्स ऑफनार्दन गुजरात,पृ०११४ ३. पुरातनप्रबन्धसंग्रह–'अजयपालप्रबन्ध', पृ० ४७ । ४. प्रबन्धचिन्तामणि---"कुमारपालादिप्रबन्ध', पृ० ९६ । स्वस्ति श्रीविक्रमसंवत् १२८५ वर्षे फाल्गुन शुदि २ रवौ। श्रीमदणहिलपुरवास्तव्य प्राग्वाटान्व यप्रसूत ठ० चंडयात्मज ठ० श्रीचंद्रप्रसादांगज ठ० श्रीसोमतनुज ठ० श्रीआशाराजनन्दनेन ठ० कु (*) मारदेवी कुक्षिसंभूतेन ठ० श्रीलणिग महं० श्रीमालदेव योरनुजेन महं श्रीतेजःपालाग्रजन्मना महामात्यश्रीवस्तुपालेन आत्मनः पुण्याभिवृद्धये इह श्रीतारंगकपर्वते श्रीअजितस्वामिदेवचैत्ये श्रीआदिनाथदेव जिबिबालंकृतं खतकभिदं कारितं । प्रतिष्ठितं श्रीनागेाद्रगच्छे भट्टारक श्री विजयसेनसूरिभिः ।। तारणदुर्गस्थशिलालेख:-- मुनिपुण्यविजय-संपा०-सुकृतकीतिकल्लोलिन्यादिवस्तुपालचरितसंग्रह, पृ० ७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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