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________________ २३३ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन में भी यहाँ के अजितनाथ जिनालय की चर्चा है।' ईडर के गोविन्द नामक एक प्रसिद्ध श्रेष्ठी ने वि० सं० १४७९ में इस जिनालय का जीर्णोद्धार कराया तथा उसमें सोमसुन्दरसूरि के हाथों अजितनाथ की नवीन प्रतिमा प्रतिष्ठित करायी ।२ जिनालय के गर्भगृह में अजितनाथ की मूर्ति पर निम्नलिखित लेख विद्यमान है___........सं० गोविंदेन भार्याजाय स्वकुटुंबयुतेन श्रेयोर्थ......... सूरिभिः ।। आचंद्रार्कजीयात् ........।" ___ इस प्रतिमालेख की सूचना का समर्थन फार्बस गुजराती सभा में संरक्षित एक हस्तलिखित पोथी (पु० सं० नामावली, पृष्ठ ३३४ ) से भी होता है। पोथी के अनुसार-“सं० १४७९ श्री ज... पं० (सं०) गोइंदेन भार्याजायलदे........ प्रमुख कुटंबयूतेन श्रेया(यो)र्थे.......... ..."सूरिभिः ।'४ अर्थात् सं० १४७१ में संघवी गोविन्द ने अपनी पत्नी जायलदे आदि कुटुम्बियों के साथ कल्याण हेतु अजितनाथ की मूर्ति की प्रतिष्ठा (श्री सोमसुन्दर ) सूरि के हाथों से करायी। यही उल्लेख प्रतिष्ठासोम ने सं० १५५४ में रचित सोमसौभाग्य. काव्य के सातवें सर्ग में विस्तृत विवरण के साथ किया है।" सं० १६४२ आषाढ़ सुदी १० को श्री विजयसेनसूरि ने इस तीर्थ का जीर्णोद्धार कराया। यह बात यहाँ जिनालय के दक्षिणी द्वार पर उत्कीर्ण शिलालेख से ज्ञात होती है। उसी समय यहाँ बाजुओं पर १. श्रीतारणगढे श्रीअजितनाथगूढमंडपे श्रीआदिनाथ बिंबं खत्तकं च । "अबूदाचलस्थित प्रशस्ति लेख, पंक्ति १५-१६ मुनि पुण्यविजय-पूर्वोक्त, पृ० ६८ २. देसाई, मोहनलाल दलीचंद-जैनसाहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० ४५३ ३. शाह, अम्बालाल पी० -जैनतीर्थसर्वसंग्रह, भाग १, खंड १, पृ० १४९ ४. देसाई, पूर्वोक्त, पृ० ४५४, पादटिप्पणी ५. शाह, अम्बालाल पी०-पूर्वोक्त, पृ० १४९ । ६. इपिग्राफिया इंडिका-जिल्द २, पृ० ३३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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