________________
जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
२३१
गयीं, सौभाग्यवश ये अभिलेखयुक्त हैं और इन पर वि० सं० १३४३ के लेख उत्कीर्ण हैं । इन लेखों से ज्ञात होता है कि ये प्रतिमायें खङ्गारगढ़ स्थित आदिनाथ जिनालय में मूलनायक के बगल में कुलिका के अन्तर्गत स्थापित की गयी थीं । "
यहाँ स्थित आदिनाथ का वर्तमान शिखरबन्द जिनालय वि० सं० १९०१ में निर्मित कराया गया है । इसमें ८ पाषाण की तथा ६ धातु की प्रतिमायें हैं । एक प्रतिमा पर वि० सं० १८९३ का लेख भी उत्कीर्ण है । यहाँ एक प्राचीन ग्रंथ भंडार भी सुरक्षित है ।
२
१०. तारण ( तारङ्गा )
कल्पप्रदीप के "चतुरशीतिमहातीर्थ नाम संग्रहकल्प" के अन्तर्गत तारण ( वर्तमान तारङ्गा ) का भी उल्लेख है और यहाँ जिन अजितनाथ के मन्दिर होने की बात कही गयी है |
गुजरात प्रान्त में पर्वत पर स्थित तीर्थों में तारङ्गा का भी विशिष्ट महत्त्व है । यह तीर्थ श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों सम्प्रदायों द्वारा मान्य है, यहाँ इनके अलग-अलग जिनालय भी हैं । जैन प्रबंधग्रन्थों तथा तीर्थमालाओं में इसके कई नाम मिलते हैं यथा तारणगिरि, तारावरनगर, तारापुर ( ताराउर ) आदि । कुमारपालप्रतिबोध ( ग्रन्थकार - सोमप्रभाचार्य, रचनाकाल - वि० सं० १२४१ ) के अनुसार यहाँ बौद्ध धर्मावलम्बी नरेश वत्सराज ने तारादेवी का मंदिर बनवाया, जिससे यह स्थान तारापुर के नाम से विख्यात् हुआ । आर्यखपुटाचार्य के उपदेश से उक्त राजा ने जैन धर्म स्वीकार कर लिया और वहाँ जैन देवी सिद्धायिका का मंदिर बनवाया । प्रभावकचरित के अनुसार चौलुक्यनरेश कुमारपाल ने चाहमान नरेश अर्णोराज पर अभियान के पश्चात तारणगिरि पर २४ गज ऊँचा जिनालय बनवाया और उसमें १०१ इंच प्रमाणवाली भगवान् अजितनाथ की प्रतिमा
१. शास्त्री, हरिशंकर प्रभाशंकर - पूर्वोक्त पृ० ४२९-३१ ।
२. शाह, अम्बालाल पी० - जैन तीर्थ सर्वसंग्रह, तीर्थसूची, क्रमाङ्क १७७० ३. वही, पृ० १४६-७;
जोहरापुरकर, विद्याधर - तीर्थवन्दनसंग्रह, पृ० १४६ ।
४. कुमारपाल प्रतिबोध ( गायकवाड़ ओरियण्टल सिरीज नं० १४, ई० सन् १९२० ) "आर्य खपुटाचार्यकथा", पृ० ४४३ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org