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पश्चिम भारत के जैन तीर्थ
राजप्रबन्ध' में भी इस स्थान का उल्लेख है। इसी काशहद के मैदान में चौलुक्य नरेश बालमूलराज ने ई० सन् ११७८ में मुहम्मद गोरी को बुरी तरह पराजित किया । इसी स्थान पर दिल्ली के गुलामवंशीय प्रथम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने ई० सन् ११९७ में चौलुक्य नरेश भीम 'द्वितीय' को परास्त किया था। जहाँ तक काशहद के सम्बन्ध में कल्पप्रदीप के उल्लेख का प्रश्न है यह स्पष्ट नहीं होता कि जिनप्रभसूरि ने गुजरात के काशहद का उल्लेख किया है अथवा अर्बुदमण्डल के काशहद का। चूंकि ये दोनों ही स्थान जैन धर्म से सम्बद्ध रहे हैं, अतः इस सम्बन्ध में निश्चय पूर्वक कुछ कह पाना कठिन है ।
७. कोकावसति पाळनाथकल्प अणहिलपुर नगरी चौलुक्यों की राजधानी और पश्चिम भारत की एक प्रमुख नगरी थी। जिनप्रभसूरि ने इस नगरी में मलधारी अभयदेवसूरि के आगमन, जयसिंह सिद्धराज द्वारा उन्हें सम्मानस्वरूप "मलधारी उपाधि" तथा निवास हैतु उपाश्रय प्रदान करने का एवं उनके शिष्य मलधारी हेमचन्द्रसूरि द्वारा नये चैत्य की स्थापना का सुन्दर विवरण प्रस्तुत किया है, जो संक्षेप में इस प्रकार है
"एक बार "प्रश्नवाहनकूल' के हर्षपूरीयगच्छालङ्कार श्री अभयदेवसूरि विहार करते हुए अणहिलपुर आये और नगर के बाहर ठहरे । एक दिन जयसिंह सिद्धराज जब उसी मार्ग से गुजर रहे थे, तो उन्होंने सूरिजी को मलमलिन वस्त्रयुक्त देखा और हाथी से उतर कर निकट जा उन्हें प्रणाम किया तथा मलधारी उपाधि एवं निवास हेतु घृतवसही के निकट उपाश्रय प्रदान किया। कालक्रम से उनके पट्ट पर हेमचन्द्रसूरि ( मलधारी) प्रतिष्ठित हुए। वे चौमासे से प्रतिदिन घृतवसही जाकर व्याख्यान देते थे। एक दिन वहाँ के गोष्ठिक लोगों ने उन्हें व्याख्यान देने से रोक दिया। इस घटना से दुःखी हो श्रावकों ने घृतवसही के निकट ही कोका नाम के एक श्रेष्ठी से सशर्त भूमि प्राप्त कर वहाँ चैत्य बनवाया एवं उसमें पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित कर १. पाठक, विशुद्धानन्द-उत्तरभारत का राजनैतिकइतिहास, पृ० ५४२
२. वही, पृ० ५४६-५४७
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