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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
२२३ गयी शांतिनाथचरित के प्रतिलेखन की प्रशस्ति' तथा पुरातनप्रबंधसंग्रह में भी यहाँ स्थित आदिनाथ जिनालय की चर्चा है। उक्त विवरणों के आधार पर जिनप्रभसूरि के उक्त कथन का समर्थन होता है। ___ काशहद को अहमदाबाद के दक्षिण-पश्चिम में २० किमी० दूर स्थित "कासींदरा" नामक स्थान से समीकृत किया जाता है। आज यहाँ कोई प्राचीन जिनालय विद्यमान नहीं है, परन्तु निकटवर्ती ग्राम में एक प्राचीन जिनालय विद्यमान है, जो आदिनाथको समर्पित है। ऐसी सम्भावना प्रकट की जा सकती है कि प्राचीन काल में काशहद एक बड़ा नगर रहा होगा और उक्त ग्राम भी जहाँ वह जिनालय स्थित है, उसी के अन्तर्गत रहा हो । ___अदगिरि की तलहटी में भी काशहृद ( वर्तमान कायंद्रा ) नामक एक प्राचीन स्थान है।' यहाँ शान्तिनाथ का एक प्राचीन जिनालय है। इस जिनालय में निर्मित एक देवकूलिका में वि० सं० १०९१/ई० सन् १०३४ का एक लेख उत्कीर्ण है, जिसके आधार पर इस जिनालय को ई० सन् की ग्यारहवीं शताब्दी में निर्मित माना जाता है। श्वेताम्बर श्रमण संघ की एक प्रमुख उपशाखा 'काशहदगच्छ' यहीं से अस्तित्व में आयी। पुरातनप्रबंधसंग्रह के अन्तर्गत वर्णित 'मुञ्ज१. काशहृदे वरनगरे धदाकेनादिनाथजिनभुवने । मूलप्रतिमाऽभिनवाऽस्थाप्यत शुद्धेन वित्तेन ॥ ४ ।।
शांतिनाथचरित की वि० सं० १३३० की प्रतिलिपि की प्रशस्ति
मुनि जिनविजय --- संपा० जैनपुस्तकप्रशस्तिसंग्रह, पृ० ४७ २. काशहृदे श्रीयुगादिदेव:, ... ... ... ... ।
"वलभीभङ्गवृत्तम्' पुरातनप्रबन्धसंग्रह, पृ. ८३ ३. पारीख तथा शास्त्री, पूर्वोक्त, पृ० ३८१ । ४. वही, पृ० ३८१ । ५. शाह, अम्बालाल प्रेमानन्द-जैनतीर्थसर्वसंग्रह, भाग १, खंड २, पृ० २६१ ६. वही ७. नाहटा, अगरचंद--'श्वेताम्बर श्रमणों के गच्छों पर संक्षिप्त प्रकाश"
यतीन्द्रसूरिअभिनन्दनग्रन्थ, पृ० १३५-१६५ ८. “सोऽबुदे कासहृदग्रामे गतः" पुरातनप्रबन्धसंग्रह, पृ० १३
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