SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन १६५ होने के कारण उल्लिखित किया है। यदि वास्तव में ऐसा ही है कि जिनप्रभसरि ने तीर्थों का उल्लेख करते समय उनके किसी सम्प्रदाय विशेष से सम्बद्ध होने के विषय में कुछ नहीं कहा है, तो यह तथ्य अपने आप में बड़े महत्त्व का है। जैन संघ में साम्प्रदायिक भेद का प्रारम्भिक इतिहास अभी भी अस्पष्ट है, परन्तु इतना तो निश्चित है कि जिनप्रभसूरि के समय तक श्वेताम्बर-दिगम्बर भेद भलीभांति प्रतिष्ठित रहा, बल्कि इसके भी प्रमाण हैं कि इन दोनों के अनेक आन्तरिक भेद भी हो चुके थे । जिनप्रभसूरि खरतरगच्छ के थे, परन्तु यह सम्भव नहीं लगता कि उन्होंने अपने समय के विभिन्न जैन केन्द्रों का उल्लेख सभी को अपने सम्प्रदाय से सम्बन्धित करने के उद्देश्य से किया हो, क्योंकि यदि ऐसा होता तो कल्पप्रदीप के विभिन्न कल्पों में यह भावना निश्चितरूप से प्रतिविम्बि हो जाती । उनके विवरणों में केन्द्रों को स्पष्ट रूप से श्वेताम्बर कहा गया होता अथवा यह दिगम्बरों का नहीं है, ऐसा संकेत प्राप्त होता और यत्र-तत्र दिगम्बरों की आलोचना भी की जाती, पर ऐसा कुछ भी नहीं है। अतः दो ही प्रकार के निष्कर्ष संभव हैं-प्रथमतः जिन तीर्थों का जिनप्रभ ने उल्लेख किया है, वे श्वेताम्बर परम्परा में भी मान्यता प्राप्त रहे और द्वितीय उनके समय तक भी श्वेताम्बर और दिगम्बरों में विशेष विद्वेष की भावना नहीं थी तथा जिनप्रभसूरि का स्वयं अपना धार्मिक दृष्टिकोण अत्यन्त उदार था। यद्यपि चन्देरी दिगम्बर सम्प्रदाय का एक प्रमुख केन्द्र रहा है, परन्तु उपलब्ध दिगम्बर अथवा श्वेताम्बर सम्प्रदाय के ग्रन्थों में इसकी जैन तीर्थ के रूप में कोई चर्चा नहीं मिलती। जिनप्रभसूरि एकमात्र जैन ग्रन्थकार हैं, जो चन्देरी को एक जैन तीर्थ के रूप में उल्लिखित करते हैं। इस दृष्टि से कल्पप्रदीप का उक्त विवरण बड़े महत्त्व का है। ५. ढीपुरी तीर्थ जिनप्रभसूरि ने कल्पप्रदीप के अन्तर्गत ढींपुरी तीर्थ पर दो कल्प लिखे हैं १-ठीपुरीतीर्थकल्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy