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मध्य भारत के जैन तीर्थ
एक मंदिर का निर्माण कराया। बाद में यहां १०-१२ और मंदिर भी निर्मित कराये गये, परन्तु आज यहां सिर्फ दो मंदिर ही विद्यमान हैं, उनमें से एक में शान्तिनाथ की विशाल प्रतिमा मूलनायक के रूप प्रतिष्ठित है, इसके अलावा अन्य तीर्थङ्करों की भी छोटी-छोटी प्रतिमायें इसमें रखी गयी हैं। दूसरे मंदिर में कुल २६ जिन प्रतिमायें हैं, ये श्याम पाषाण से निर्मित और सिर-विहीन हैं । इस मंदिर की दीवार पर वि० सं० १३०७ का एक अभिलेख उत्कीर्ण है। उक्त दोनों मंदिर भी दिगम्बर आम्नाय से सम्बद्ध हैं। ___ उपरोक्त विवरणों से सिद्ध होता है कि चन्देरी और उसके निकटवर्ती स्थानों में जैन धर्म का विस्तृत प्रभाव था। यहां से प्राप्त जिन प्रतिमायें दिगम्बर सम्प्रदाय से सम्बन्धित हैं। १६वीं शती से यहां श्वेताम्बरों के उपस्थिति की भी सूचना मिलती है, परन्तु दिगम्बरों की अपेक्षा उनकी संख्या न्यून ही रही।
जहां तक जिनप्रभसूरि द्वारा यहां अजितनाथ के मंदिर होने के उल्लेख का प्रश्न है, यह तो स्पष्ट है कि आज यहां उक्त तीर्थङ्कर का कोई मंदिर विद्यमान नहीं है, संभव है कि उनके समय में यहां अजितनाथ कोई मंदिर यहां 'हा हो। ___ अब हमारे सामने यह प्रश्न उठता है कि जिनप्रभसूरि ने इस तीर्थ का, जो मध्ययुग में दिगम्बर सम्प्रदाय से सम्बन्धित रहा, साम्प्रदायिक द्वेषवश एक श्वेताम्बर तीर्थ के रूप में मान्यता दिलाने हेतु उल्लिखित किया है अथवा साम्प्रदायिक संकीर्णता से दूर रहते हुए एक जैन तीर्थ १ जैन, बलभद्र-पूर्वोक्त, पृ० ९९ । २. वही, पृ० ९९ । ३. आकियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया, ऐनुअल रिपोर्ट १९२४-२५,
पृ० १६७ । ४. जैन, बलभद्र-पूर्वोक्त, पृ० १०० । ५. हंससोम द्वारा वि० सं० १५५६ के पश्चात् लिखी गयी पूर्वदेशीयचैत्यपरिपाटी [प्राचीनतीर्थमालासंग्रह-( संपादक. विजयधर्मसूरि ) के अन्तर्गत प्रकाशित] में चन्देरी के श्वेताम्बर जैन संघ द्वारा सं० १५५६ में पूर्वदेशीय तीर्थों की यात्रा करने का उल्लेख है ।
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