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मध्य भारत के जैन तीर्थ
नगरी का नाम चंद्रपुर उल्लिखित है।' अलबिरूनी (१०३०ई० सन्।
और इब्नबतूता (१०३६ ई० सन्) ने भी इस नगरी की चर्चा की है।' पृथ्वीराजरासो ( १६वीं शती ) और आइन-ए-अकबरो में भी इसका उल्लेख मिलता है।
चन्देरी नगरी एवं उसके आसपास के निकटवर्ती क्षेत्रों से मध्ययुगीन अनेक प्रतिमाओं एवं मंदिरों के अवशेष प्राप्त हुए हैं, जिनमें जैन मंदिरों एवं तीर्थङ्करों की प्रतिमायें भी हैं, सौभाग्य से इनमें से कुछ पर अभिलेख भी उत्कीणं हैं, जिनके अध्ययन से इस क्षेत्र में जैनधर्म की स्थिति पर नया प्रकाश पड़ सकता है। वि०सं० १४५७ में चन्देरीपट पट की स्थापना हई।५ भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति और उनके उत्तराधिकारियों ने इस क्षेत्र में जैन धर्म को लोकप्रिय बनाने का प्रयास किया।
चन्देरी मे ८ मील दूर अटेर नदी के दक्षिणी तट पर बूढीचन्देरी या प्राचीन चन्देरी स्थित है, जो अब एक उजाड़ ग्राम मात्र है। यहां १०वीं से १२वीं शती के मंदिरों व भवनों के खण्डहर विद्यमान हैं।" यहां की प्रतिमायें अब चन्देरी तथा अन्य स्थानों पर संरक्षित हैं।
चन्देरी के निकट स्थित 'गुरिल का पहाड़' और 'खण्डारपहाड़ो' से भी जैन मंदिर और प्रतिमाओं के अवशेष मिले मिले हैं । चन्देरी और उसके निकटवर्ती स्थानों से प्राप्त पुरावशेषों का विवरण इस प्रकार
१. पाटिल-पूर्वोक्त, पृ० ९९। २. मध्यभारत मार्गनिर्देशिका, पृ० ३३ । ३. बाजपेयी—पूर्वोक्त, पृ० ८७ । ४. घोष, अमलानंद-जैन कला और स्थापत्य-खंड २, पृ० ३५६ । ५. वही, पृ० ३५६ ।। ६. वही। ७. कनिंघम-आर्कियोलाजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया रिपोर्ट जिल्द २;
पृ० ४०३; गर्दै, एम०वी०----गाइड टू चन्देरी, पृ० ४; पाटिल, डी०आर०-द डिक्सकृप्टिव एण्ड क्लासिफाइड लिस्ट ऑफ मानुमेन्ट्स इन मध्यभारत, संख्या २९७ ।
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