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________________ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन १६१ स्थित है। स्थानीय परम्परानुसार चन्देरी चेदि जनपद की राजधानी थी । बौद्ध और जैन साहित्य में इस जनपद का उल्लेख प्राप्त होता है। महाभारत' और पुराणों में भी इसकी चर्चा है। चेदि जनपद वत्स जनपद के दक्षिण पश्चिम में स्थित था। इसके पूर्व में काशी, दक्षिण में विन्ध्यपर्वत, पश्चिम में अवन्ती और उत्तर-पश्चिम में शूरसेन जनपद स्थित था। चेदि जनपद के अन्तर्गत मध्यप्रदेश के कुछ भाग एवं बुंदेलखण्ड का प्रदेश तथा उसके समीपवर्ती क्षेत्र सम्मिलित रहे। विभिन्न युगों में इस जनपद की सीमायें बदलती रहीं। प्रारम्भ में शुक्तमती इस जनपद की राजधानी रही, परन्तु गुप्तकाल में कालिंजर ने शुक्तमती का स्थान ले लिया। पूर्व मध्ययुग में कल्चुरियों का यहां राज्य स्थापित हुआ, इसीलिये उन्हें चेदिकूल भी कहा जाता है। तत्कालीन राजनैतिक प्रतिद्वंदिता में चन्देरी कभी चन्देलों और कभी कल्चरियों के अधीन रही। ग्रीक इतिहासकारों ने संभवतः इसी नगरी. जिसे चंद्रावती भी कहा जाता था, संद्रावती नाम से उल्लिखित किया है। यहां से चन्देल नरेश कार्तिवर्मा (ई सन् १०६०-११००) के समय का एक शिलालेख मिला है, जिससे ज्ञात होता है कि उसने यहां एक दुर्ग बनवाया था, जो निर्माता के नाम पर कीर्तिदुर्ग नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस लेख में इस १. पाटिल, डी०आर०-कल्चरल हेरिटेज ऑफ मध्यभारत, पृ० ९९ । २. रायचौधरी, हेमचन्द्र प्राचीनभारत का राजनैतिक इतिहास, पृ० १००-१०१। ३. जैन, जगदीश चन्द्र - जैनआगमसाहित्य में भारतीय समाज, पृ० ४८१। ४. रायचौधरी-पूर्वोक्त, पृ० १८१ ५. पाण्डेय, राजबली-पुराणविषयानुक्रमणिका, पृ० १०५ । ६. शास्त्री, नेमिचन्द्र --आदिपुराण में प्रतिपादित भारत, पृ० ५७ । ७. डे नन्दोलाल-पूर्वोक्त, पृ० ४७ । ८. पाठक, विशुद्धानंद-प्राचीन भारत का राजनैतिक इतिहास, पृ० ६०७ । ९. बाजपेयी, कृष्णदत्त- ज्योग्राफिकल इन्साइक्लोपीडिया ऑफ ऐंशेंट एण्ड मिडवल इंडिया, पृ० ८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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