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मध्य भारत के जैन तीर्थ
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मिलता है, जिसके दर्शनार्थ आर्य सुहस्ति यहाँ आये थे । पुरातात्त्विक साक्ष्यों से भी इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि यह नगरी जैन धर्म के एक प्रसिद्ध केन्द्र के रूप में विख्यात रही । पार्श्वनाथ की शासनदेवी पद्मावती की एक प्रतिमा यहाँ गूढ़ में स्थित कालिकादेवीके मंदिरमें अभी भी विद्यमान है । इस प्रतिमा की विशालता से अनुमान होता है कि वह एक समय पार्श्वनाथ की भव्य प्रतिमा के पास एक विशाल जिना - लय में प्रतिष्ठित रही होगी। दूसरा प्रमाण है - महाकालवन की भूमि से प्राप्त श्याम पाषाण की पार्श्वनाथ की प्रतिमा, जो आज गन्धवती घाट के पास स्थित श्वेताम्बर मंदिर में अवन्तिपार्श्वनाथ के नाम से पूजित है ।" इस प्रकार स्पष्ट होता है कि प्राचीन उज्जयिनी में जैन धर्मों का स्थान इतना ऊंचा था कि उससे भी महाकालेश्वर मंदिर की उत्पत्ति की उपर्युक्त कल्पना को उत्तेजन और इतनी शताब्दियोंपर्यन्त प्रचलित रहने की शक्ति प्राप्त हो सकी ।
कु० क्राउझे के उपर्युक्त निष्कर्ष अत्यन्त सुविचारित और सामान्यरूप से ग्राह्य हैं। उससे अधिक निश्चय से इस संबंध में कुछ भी कह पाना कठिन है । जैन कथाओं से उज्जयिनी में शैव और जैन धर्मों में परस्पर प्रतिस्पर्धा की बात तो स्पष्ट है, परन्तु यह निर्णय कर पाना दुष्कर है कि किसी तीर्थ विशेष के विवाद के संदर्भ से कौन परम्परा प्राचीन है और कौन अपेक्षाकृत उत्तरकालीन है । यह उल्लेखनीय है कि विवाद संबंधी जैन कथाओं का इतिहास गुप्तकाल से प्राचीन नहीं सिद्ध होता और इस समय तक तो उज्जयिनी शैव धर्म के प्रमुख केन्द्र के रूप में विख्यात हो चुकी थी 1
४. चन्देरी
कल्पप्रदीप के चतुरशीतिमहातीर्थ नाम संग्रहकल्प के अन्तर्गत चन्देरी का भी उल्लेख है और यहां भगवान् अजितनाथ के मंदिर होने की चर्चा है ।
चन्देरी मध्यप्रदेश के गुना जिले में बेतवा नदी के तट पर
१. विक्रमस्मृतिग्रंथ, पृ० ४२२ । २. वही, पृ० ४२२ ।
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