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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
१२५ दशार्ण पर्वत के समीप स्थित था, विरोध किया है और उसे मगध देश में स्थित बतलाया है। पउमचरिउ' (विमल ५वीं-६ठी ई० सन् ) में कोटिशिला को सिन्धुदेश में सम्मेतशिखर के निकट स्थित बतलाया गया है। कुछ विद्वानों ने सिन्धुदेश को तीरमुक्ति (आधुनिक तिरहुत) से समीकृत किया है । यदि यह समीकरण सही है तो राजगृह के इसीगिरि (ऋषिगिरि) पहाड़ी पर स्थित कालशिला को कोटिशिला माना जा सकता है। पं० नाथूराम प्रेमी ने भी उक्त कालशिला को ही कोटिशिला माना है।
३. चम्पापुरीकल्प चम्पा अङ्ग जनपद की राजधानी और प्राचीन भारतवर्ष की प्रमुख नगरियों में से एक थी। ब्राह्मणीय, बौद्ध और जैन साहित्य में इस नगरी का उल्लेख प्राप्त होता है । चीनी यात्रियों ने भी अपने यात्राविवरणों में इस नगरी की चर्चा की है। जैन मान्यतानुसार यहां १२वें तीर्थङ्कर भगवान् वासुपूज्य के च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण-ये ५ कल्याणक सम्पन्न हुए । महावीर ने ३ वर्षावास भी यहीं व्यतीत किया है । जिनप्रभ के विवरण की प्रमुख बातें इस प्रकार
___ "चम्पा नगरी अङ्ग जनपद की राजधानी थी। यहां भगवान् वासुपूज्य के च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण ये ५ कल्याणक सम्पन्न हुए। वासुपूज्यस्वामी के पुत्र का नाम मधव था, वे चम्पा नगरी के राजा थे। उनकी पुत्री लक्ष्मी को आठ पुत्र तथा रोहिणी नामक एक कन्या थी। उस कन्या का स्वयंवर में अशोक के साथ विवाह हुआ । एक बार रोहिणी ने वासुपूज्य स्वामी के शिष्य रुप्यकुम्भ-स्वर्णकुम्भ से अपने पूर्वभव का वृत्तान्त सुनकर उद्यापन १. "कोडिसिलुद्ध रणपव्वं' पउमचरिउ ४८०९६-१०९ २. मिश्र, योगेश—"सिन्धुदेश ऑफ जैन लिटरेचर इज तीरभुक्ति"
महावीर जैन विद्यालय सुवर्णजयन्ती अङ्क, खंड १, पृ० २२३ * ३. ' प्रेमी, नाथूराम-जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ४४८
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