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________________ १२६ पूर्व भारत के जैन तीर्थ विधि से आराधना की और सपरिवार मुक्ति प्राप्त की । महावीर स्वामी का इस नगरी में आगमन हुआ था। यहां स्थित पूर्णभद्रचं त्य में उन्होंने अपने ३ वर्षावास व्यतीत किये। इसी नगरी के निकट स्थित कादम्बरी वन में कालगिरि नामक पहाड़ी की तलहटी में एक सरोवर था । एक बार भगवान् पार्श्वनाथ वहां विचरण कर रहे थे । जब राजा करकन्डु को यह बात ज्ञात हुई तो वह उनके दर्शन हेतु वहां गया, परन्तु उस समय तक भगवान् अन्यत्र विहार कर चुके थे । अतः उसने उसी स्थान पर उनकी प्रतिमा स्थापित की और वह स्थान कलिकुंडतीर्थ के नाम से प्रसिद्ध हुआ । राजा करकण्डु चम्पा के राजा दधिवाहन का पुत्र था । इसके माता का नाम पद्मावती था । जंगल में ही इसका जन्म हुआ और बाद में यह कलिंग का राजा बना । इसने एक वृषभ (बैल) के यौवन और वृद्धावस्था को देखकर प्रतिबोध प्राप्त किया और प्रत्येकबुद्ध हुआ । महावीर स्वामी को प्रथम पारणा कराने वाली साध्वी चन्दना भी इसी नगरी के राजा दधिवाहन की कन्या थी । यहीं आयं शय्यंभवसूरि ने दशवेकालिकसूत्र की रचना की थी । श्रेणिक के पुत्र कुणिक ने अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् अपनी राजधानी राजगृह से हटाकर चम्पा नगरी में स्थापित की। सती सुभद्रा, दानी राजा कर्ण, श्रेष्ठी सुदर्शन, श्रावक कामदेव और उसकी पत्नी भद्रा, श्रेष्ठी पालित्त, उसका पुत्र समुद्रपाल, श्रावक सुनन्द आदि चम्पा नगरी से ही सम्बन्धित थे । कौशिकार्य के पुत्र रुद्रक ने सुजात, प्रियंगु आदि कई संविधानों को इसी नगरी में निर्मित किया ।" जैन मान्यतानुसार भगवान् वासुपूज्य १२ वें तीर्थङ्कर थे । उनके च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण ये ५ कल्याणक इसी नगरी में सम्पन्न हुए। जैन साहित्य' में इस सम्बन्ध में विस्तृत विवरण प्राप्त होता है । १. [ अ ] आवश्यकनियुक्ति ३१०, ३८३ [ब] चंपाये वासुपुज्जो वसुपुज्जणरेसरेण विजयाए । फग्गुणसुद्धच उद्दसिदिणम्मि जादो विसाहासु ॥ .." चम्पापुरे चैव हि वासुपूज्यः ॥ तिलोयपण्णत्ती ४|५३७ Jain Education International वराङ्गचरित २७।८३ चम्पा जन्मनि मुक्तोऽभूद्वासुपूज्यो जयांघ्रिपः । हरिवंशपुराण ६०।१९३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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