________________
जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
११३ साहित्य' में विस्तृत से चर्चा प्राप्त होती है। महावीर का कई बार इस नगरी में आगमन हुआ और अपना १०वाँ वर्षावास भी उन्होंने यहीं व्यतीत किया । २ जैन ग्रन्थों में यहां स्थित तिन्दुक उद्यान और कोष्ठक चैत्य का उल्लेख प्राप्त होता है। उत्तराध्ययनसूत्र से ज्ञात होता है कि तिन्दुक उद्यान में ही महावीर के प्रधान गणधर गौतम स्वामी और पार्श्वनाथ की परम्परा के केशीकुमार के मध्य चातुर्याम १. [अ] आवश्यकनियुक्ति, सूत्र-३८५
आवश्यकसूत्रवृत्ति (मलयगिरि) पृ० २३७ और आगे [ब] सावत्थीए संभवदेवो य जिदारिणा सुसेणाए । मग्गसिरपुण्णिमाए जेट्ठारिक्खम्मि संजादो ।
तिलोयपण्णत्ती ४५२८ श्रावस्तिकः स्याज्जिन संभवश्च । ।
वराङ्गचरित (जटासिंहनंदि) २७१८२ श्रावस्ती संभव: सेना जितारिः शाल पादपः। ज्येष्ठा नक्षत्रमेनांसि संमेदश्च पुनन्तु वः ॥
हरिवंशपुराण (जिनसेन) ६०।१८४ द्वीपेऽस्मिन् भारते वर्षे श्रावस्तिनगरेशिनः ।
उत्तरपराण (गुणभद्र) ४९।१४ सम्भवे तव लोकानां शं भवत्यद्य शम्भव ।
वही ४९।२० २. सावत्थीए वासं चित्ततवो साणुलट्ठि बहिं ॥ आवश्यकनियुक्ति, सूत्र-४९५ तदनन्तरं भगवान् श्रावस्त्यां वर्ष-दशमं वर्षा रात्रं कृतवान्, ......।
आवश्यकसूत्रवृत्ति (मलयगिरि) पृ० २८७ और आगे ३. तिन्दुयं नाम उज्जाणं । उत्तराध्ययनसूत्र, २३।४
कोट्ठगं नाम उज्जाणं । वही, २३।८।। ......... सामिणा अणणुण्णातो सावत्थि गतो पंचसतपरिवारो, तत्थ तेंदुगुज्जाणे कोट्ठगे चेतिते समोसढ़ो, ......... ।
. आवश्यकचूर्णी, पूर्वभाग, पृ० ४१६ ४. अह ते तत्थ सीसाणं विन्नाय पवितक्कियं । ..
समागमे कयमई उभओ केसि-गोयमा॥ उत्तराध्ययनसूत्र २३।१४ .
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org