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________________ ११२ उत्तर भारत के जैन तीर्थ "दक्षिणार्द्ध भारतवर्ष के कुणाला जनपद में श्रावस्ती नामक नगरी अब ‘महेठ' के नाम से प्रसिद्ध है । यहाँ तीसरे तीर्थङ्कर सम्भवनाथ के च्यवन, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान ये चार कल्याणक सम्पन्न हुए हैं। २४वें तीर्थङ्कर महावीर स्वामी ने अपना एक वर्षावास इसी नगरी में व्यतीत किया। यहीं के तिन्दुक नामक उद्यान में महावीर स्वामी के गणधर गौतम और पार्श्वनाथ की परम्परा के अनुयायी केशीकुमार के मध्य सैद्धान्तिक नियमों की चर्चा हुई। महावीर का शिष्य और उनकी पुत्री प्रियदर्शना का पति जामालि इसी नगरी में स्थित कोष्ठक चैत्य में प्रथम निह्नव हुआ। कौशाम्बी नरेश जितशत्रु के पुरोहित काश्यप और उनकी पत्नी यक्षा को कपिल नामक एक पुत्र था। पिता के मृत्योपरान्त वह उनके मित्र इन्द्रदत्त उपाध्याय, जो श्रावस्ती में रहते थे, के पास अध्ययनार्थ गया और वहाँ शालिभद्र नामक एक श्रेष्ठी के घर रहने लगा। कपिल वहाँ पर अपनी सेवा के लिये नियुक्त दासी पर आसक्त हो गया और उसके कथनानुसार दो मासे स्वर्ण की याचना करने लगा। उसी समय उसे ज्ञान उत्पन्न हो गया और स्वयंबुद्ध का पद प्राप्त किया एवं बाद में ५०० चोरों को प्रतिबोध देकर सिद्धि प्राप्त की। यहाँ के राजा जितशत्रु और रानी धारिणी के पुत्र स्कन्दाचार्य का इसी नगरी में जन्म हआ। एक बार स्कन्दाचार्य अपने ५०० शिष्यों के साथ कुम्भकार-कड नगर जा रहे थे जहाँ पालक ने इन्हें और इनके सभी शिष्यों को कोल्ह में पिला दिया। इसी नगरी के एक अन्य राजा जितशत्रु के पुत्र भद्र ने प्रवज्या ले ली और घूमते-घूमते शत्रुदेश में चला गया जहाँ राजपुरुषों द्वारा उसे चोर समझ कर उसके शरीर पर कांटों वाली घास से स्पर्श करा अंग-भंग किया गया। परन्तु इस प्रकार कष्ट पाते हए उन्हें मुक्ति प्राप्त हो गयी। राजगह आदि नगरियों की भांति इस नगरी में भी ब्रह्मदत्त का आगमन हुआ था। इसी नगरी में अजितसेनाचार्य का शिष्य क्षुल्लककुमार प्रसंगवश अपने पत्नी, यूवराज, सार्थवाह और मन्त्री के साथ प्रतिबोधित हआ। इस प्रकार इस नगरी में अनेक घटनायें घटित हो चुकी हैं।" जैन परम्परानुसार सम्भवनाथ तीसरे तीर्थङ्कर थे। इनके माता-पिता, जन्मस्थान, कल्याणक आदि के सम्बन्ध में जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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