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________________ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन १११ यह प्रायः सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में फैली हुई है। वर्तमान में मिर्जापुर शहर से ६ किमी० दूर स्थित पहाड़ी, जहाँ विन्ध्यवासिनी देवी का एक महिम्न मंदिर है, विन्ध्याचल के नाम से अभिहित की जाती है। जिनप्रभसूरि ने कल्पप्रदीप के चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रहकल्प के अन्तर्गत इस पर्वत का उल्लेख किया है और यहाँ मुनि सुव्रत और श्रीगुप्त के जिनालयों के होने की बात कही है। ____ जैन साहित्य में विन्ध्याचल पर्वत का उल्लेख तो है, परन्तु जैन तीर्थ के रूप में जिनप्रभ के अलावा किसी अन्य जैन ग्रन्थकार ने इसका उल्लेख ही नहीं किया है। परन्तु यह रोचक है विन्ध्यवासिनी देवी के मंदिर और उसके आसपास की पहाड़ियों पर यत्र-तत्र अनेक जिन प्रतिमाओं के भग्नावशेष मिले हैं। इससे जिनप्रभसूरि की मान्यता का स्वतः ही समर्थन होता है और हमें यह स्वीकार करना पड़ता है कि उनके समय में यहाँ निश्चित रूप से कुछ जिनालय विद्यमान रहें होंगे। ११. श्रावस्तीनगरी-कल्प श्रावस्ती कुणाला जनपद की राजधानी और प्राचीन भारत की प्रसिद्ध नगरी थी। ब्राह्मणीय, बौद्ध और जैन साहित्य में इसके बारे में वर्णन प्राप्त होता है । बुद्ध और महावीर ने यहां विहार किया था। जैन मान्यतानुसार यहां तीसरे तीर्थङ्कर भगवान् सम्भवनाथ का जन्म हुआ था, इसीलिए यह नगरी जैन तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध हुई। जिनप्रभसरि ने कल्पप्रदीप में इस तीर्थ का उल्लेख करते हुये इस नगरी के सम्बन्ध में जैन परम्परा में प्रचलित कथानकों की चर्चा की है। उनके विवरण की प्रमुख बातें इस प्रकार हैं१. भगवतीसूत्र ३, २।१४४; १४, ८१५२८; परमचरिउ १०।२७; ३१। १००; आदिपुराण २९।८८ । २. मुनिकान्तिसागर-खोज की पंगडंडियां (भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा ई० सन् १९६० प्रकाशित), पृ० २२२-२७ । मुनि जी ने इन अवशेषों को ई० सन् ५वीं शती से १२वीं शती तक का बतलाया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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