SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०४ उत्तर भारत के जैन तीर्थ रित है।' नागकुमार के सम्बन्ध में जिनप्रभसूरि द्वारा उल्लिखित कथानक जैन साहित्य में अन्यत्र उल्लिखित नहीं है, अतः इस कथा का स्रोत क्या है ? यह कहना कठिन है। जहाँ तक जिनालय और उसमें रखी प्रतिमा का प्रश्न है, यह तो स्पष्ट है कि उक्त प्रतिमा आज लप्त है। १७वीं शती के श्वेताम्बर आचार्य जयसागर ने यहाँ दो मन्दिरों की चर्चा की है और बतलाया है कि इनमें एक चरणपादुका और ३ जिन-प्रतिमायें विराजमान हैं । सौभाग्य विजय ( १७वीं शती ई० सन् ) ने भी इस तीर्थ का उल्लेख किया है। इस प्रकार स्पष्ट है कि १७वीं शती में भी यह स्थान तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध था। वर्तमान में यहाँ दोनों सम्प्रदायों के दो-दो जिनालय हैं, परन्तु ये जिनालय और उनमें प्रतिष्ठापित प्रतिमायें बर्तमान युग की हैं। रत्नवाहपुर को फैजाबाद-बाराबंकी रेलमार्ग पर स्थित सोहावल स्टेशन से २ किमी० दूर सरयू नदी के तट पर स्थित रोनाही नामक ग्राम से समीकृत किया जाता है ।" ९. वाराणसीनगरी-कल्प वाराणसी नगरी काशी जनपद की राजधानी और भारतवर्ष की अति प्राचीन नगरियों में एक है। पहले इसका नाम काशी था, किन्तु बाद में वाराणसी नाम प्रचलित हुआ। ब्राह्मणीय, बौद्ध और जैन साहित्य में इस नगरी तथा यहाँ से सम्बन्धित अनेक कथानकों का १. आवश्यकनियुक्ति-३८३; रयणपुरे धम्मजिणो भाणुणरिंदेण सुव्वदाए य । माघसिदतेरसीए जादो पुस्सम्मि णक्खत्ते ॥ तिलोयपण्णत्ती ४।५४० .........धर्मस्तस्था रत्नपुरे प्रसूत: ।- वराङ्गचरित २७/८४ धर्मश्च दधिपर्णश्च भानुराजश्च सुव्रता । पुष्यो रत्नपुरं सोऽद्रिर्ध बुद्धि ददातु वः ॥ हरिवंशपुराण ६०।१९६ २. विजयधर्मसूरि-प्राचीनतीर्थमालासंग्रह पृ० ३७ ३. वही, पृ० ३७ ४. जैन, बलभद्र--भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ, खंड १, पृ० १६०-६२ ५. विजयधर्मसूरि-पूर्वोक्त, पृ० ३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy