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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन के ग्रन्थों में विस्तृत विवरण प्राप्त होते हैं। अतः यह माना जा सकता है कि उन्होंने इस विवरण को उक्त परम्परा के आधार पर ही उल्लिखित किया होगा।
८. रत्नवाहपुर-कल्प भगवान् धर्मनाथ जैन परम्परा में १५वें तीर्थङ्कर के रूप में मान्य हैं। उनका जन्म कोशल जनपद के अन्तर्गत रत्नवाहपुर नामक नगरी में हुआ था, इसी कारण यह स्थान जैन तीर्थ के रूप में विख्यात् हआ। जिनप्रभसरि ने भी कल्पप्रदीप में इस नगरी को . रत्नवाहपुर नाम से एक जैन तीर्थ के रूप में उल्लिखित किया है। उनके विवरण की प्रमुख बातें इस प्रकार हैं---
___ जम्बूद्वीप भारतवर्ष के कोशल जनपद के अन्तर्गत घाघरा नदी के तट पर रत्नवाहपुर नामक एक नगरी है। वहाँ इक्ष्वाकुवंशीय राजा भानु के पुत्र के रूप में १५वें तीर्थङ्कर भगवान् धर्मनाथ का जन्म हुआ। उनके माता का नाम सुव्रता था। धर्मनाथ की दीक्षा और केवलज्ञान कल्याणक भी इसी नगरी में सम्पन्न हुए और सम्मेत्शिखर पर उनका निर्वाण हुआ। बहुत कालोपरान्त एक नागकुमार (जिसकी कथा भी ग्रन्थकार ने संक्षिप्त रूप से इसी कल्प के अन्तर्गत उल्लिखित की है) ने भगवान् धर्मनाथ का एक चैत्यालय बनवाया, जिसमें नागमूर्ति युक्त धर्मनाथ की प्रतिमा विराजमान है। धर्मनाथ के शासन देवता किन्नर और शासन देवी कन्दर्पा का भी ग्रन्थकार ने उल्लेख किया है।
धर्मनाथ के जन्मस्थान, माता-पिता, पंचकल्याणक आदि के सम्बन्ध में ग्रंथकार ने जो सूचना दी है वह पूर्व-परम्परा पर आधा
१. काणे, पी० वी०-धर्मशास्त्र का इतिहास, (हिन्दी अनुवाद) भाग ३,
पृ० १४००-१५०५; गुप्त, सरयू प्रसाद-महाभारत तथा पुराणों के तीर्थों का आलोचनात्मक अध्ययन, पृ० १३९ ।
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