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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
९१ विवरण प्राप्त होता है। भगवान महावीर की प्रथम पारणा इस नगरी में हुई।' चन्दनबाला महावीर स्वामी के श्रमणीसंघ की प्रधान थीं। इनके बारे में जैन ग्रन्थों में विस्तृत विवरण प्राप्त होता है। ग्रन्थकार ने कौशाम्बीनरेश शतानीक की पत्नी और उदायन की माता मृगावती के बारे में जिन बातों की चर्चा की है, उनका आवश्यकचूर्णी में विस्तार पूर्वक उल्लेख है।
जिनप्रभसूरि ने यहां गंगातट पर अनेक जिनालयों के होने की बात कही है। यह विवरण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि कोसम और उसके आसपास के क्षेत्रों से बड़ी संख्या में जिन प्रतिमाएं, तोरण, मानस्तम्भ, आयागपट्ट आदि प्राप्त हुए हैं, इनमें से अधिकांश स्थानीय पुरातत्त्व संग्रहालय में सुरक्षित हैं।५ कोसम स्थित एक कच्चे मकान से भी कुछ महत्वपूर्ण जैन पुरावशेष मिले हैं, इनमें कुषाणकालीन अभिलेख युक्त एक आयागपट्ट भी शामिल है। यहाँ से प्राप्त जिन प्रतिमायें एवं अन्य पुरावशेष ८ वीं से २ वीं शती तक के हैं।" चौदहवीं शती में जिनप्रभसूरि के समय में भी यह नगरी जैन तीर्थ के रूप में विद्यमान थी। परन्तु बाद में मुस्लिम शासकों (v) ऊर्जकृष्ण त्रयोदश्यां पद्मप्रभजिनेश्वरः ।
। हरिवंशपुराण (जिनसेन) ६०।१७१ कौशाम्बी धरणश्चित्रा सुसीमा जिनपुङ्गवः ।'
पद्मप्रभः प्रियङ्गुश्च मङ्गलं वः स पर्वतः ।। वही ६०।१८७ १. आवश्यकचर्णी, पूर्वभाग, पृ० ३१८-१९ २. वही प० ३२० ३. मेहता और चन्द्रा-पूर्वोक्त, भाग १, पृ० २४६-४७ ४. भगवं वद्ध माणसामी कोसंबीए समोसरितो, तत्थ चंदसूरा भगवंतं वंदगा
सविमाणा उत्तिण्णा, तत्थ मिगावती अज्जा उदयणमाता दिवसोत्तिकातुं चिरं ठिता, सेसाओ साधुणीओ तित्थगरं वंदितूण सनिलयं गताओ, चंदसूरावि
तित्थगरं वंदितूण पडिगता,..."। आवश्यकचूर्णी, पूर्वभाग, पृ० ६१५. ५. प्रमोदचन्द्रा-स्टोन स्कल्पचर्स इन द इलाहाबाद म्यूजियम
संख्या-४०६-४१०, ४१८, ४५५ आदि । ६. बैनर्जी, आर० डी०-"सम स्कल्पचर्स फ्राम कोसम" आ० स० इ०
वार्षिकरिपोर्ट, १९१३-१४, पृ० २६२-६४ ७. प्रमोदचन्द्रा-पूर्वोक्त,
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