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________________ ९२ उत्तर भारत के जैन तीर्थं -की कृपादृष्टि ! से यह समृद्धशाली नगरी पूर्णरूपेण सदैव के लिए उजड़ गयी । कौशाम्बी नगरी को इलाहाबाद शहर से दक्षिण-पश्चिम में ३० मील दूर स्थित कोसम नामक स्थान से समीकृत किया जाता है ।" यहाँ दोनों सम्प्रदायों के अलग-अलग जिनालय विद्यमान हैं, जो वर्तमान युग के हैं । ५. चन्द्रावती जैन परम्परा में भगवान् चन्द्रप्रभ आठवें तीर्थङ्कर माने गये हैं । उनके च्यवन, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान - ये ४ कल्याणक चन्द्रावती ( चन्द्रपुरी) नामक नगरी में सम्पन्न हुये थे, ऐसा जैन परम्परा के दोनों सम्प्रदायों के प्राचीन ग्रन्थों में उल्लेख है । यद्यपि ये सभी ग्रन्थ इस नगरी की भौगोलिक अवस्थिति का कोई संकेत नहीं करते हैं । आचार्य जिनप्रभसूरि ने इस नगरी के सम्बन्ध में प्रचलित जैन मान्यताओं का उल्लेख करते हुये सर्वप्रथम इसकी भौगोलिक अवस्थिति १. जैन, जगदीशचन्द्र -- भारतवर्ष के प्राचीन जैन तीर्थ, २. तीर्थदर्शन, भाग १, पृ० १०० । ३. ( अ ) समवायाङ्ग, १५७; आवश्यकचूर्णी ३८२; ( ब ) चंद्रपहा चंदपुरे जादो महसेणलच्छिमइआहिं । पुस्सस्स किण्हएयारसिए अणुराहण क्खत्ते || चन्द्राभं चन्द्रपुर्यां तिलोय पण्णत्ती ४।५३३ Jain Education International पृ० ३७ । पद्मपुराण ९९।१४६ वराङ्गचरित २७/८२ चन्द्रप्रभश्चन्द्रपुरे प्रसूतः वन्द्या चन्द्रपुरी चन्द्रप्रभो नागतरुगिरिः । सोऽनुराधा महासेनो लक्ष्मणा जननी सताम् || तस्मिन् षण्मासशेषायुष्या गमिष्यति भूतले । द्वीपेऽस्मिन् भारते वर्षे नृपश्चंद्रपुराधिपः || हरिवंशपुराण ६०।१८९ For Private & Personal Use Only उत्तरपुराण ५४।१६३ www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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