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उत्तर भारत के जैन तीर्थ
"इस नगरी में छठे तीर्थङ्कर पद्मप्रभ के च्यवन, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान कल्याणक सम्पन्न हए। साध्वी चन्दनबाला ने यहाँ महावीर स्वामी को प्रथम पारणा करायी। कौशाम्बी नरेश शतानीक और रानी मृगावती का पुत्र उदयन गन्धर्व विद्या में बड़ा निपुण था। मृगावती के अनुरोध पर उज्जयिनीनरेश चण्डप्रद्योत ने इसी नगरी में ईंटों का एक किला बनवाया। एक बार महावीर स्वामी के यहाँ आगमन के अवसर पर उनके समवशरण में चन्दनबाला और मृगावती भी थीं। सन्ध्या होने के पूर्व सभी लोग अपने अपने घरों को लौट आये परन्तु मृगावती वहीं देर तक बैठी रही, क्योंकि उस समवशरण में सूर्य और चन्द्रमा के भी उपस्थित होने से उसे समय के बारे में भ्रम हो गया। परन्तु जब उसे रात्रि होने का पता चला, तो वह तुरन्त उपाश्रय लौटी, वहाँ चन्दनवाला ने उसे उपालम्भ दिया। अपने दोष को स्वीकार करते हुए मृगावती ने उसी रात्रि अपने कर्मों की निर्जरा कर कैवल्य प्राप्त किया। यह नगरी यमुना तट पर स्थित है। यहाँ अनेक चैत्य हैं जिनमें सुन्दर-सुन्दर जिनप्रतिमायें विद्यमान हैं । यहाँ स्थित पद्मप्रभ के जिनालय में महावीर स्वामी को पारणा कराती हुई चन्दनबाला की एक प्रतिमा भी रखी है।"
जैन मान्यतानुसार पद्मप्रभ छठे तीर्थङ्कर थे। उनके माता-पिता, जन्मस्थान तथा कल्याणकों आदि के सम्बन्ध में जैन ग्रन्थों में विस्तृत
१. (i) समवायाङ्ग (सं० मधुकर मुनि) २४।१६० (ii) जणणी सव्वत्थ विणिच्छएसु सुमइत्ति तेण सुमइजिणो । पउमसयणमि जणणीइ डोहलो तेण पउमामो ।।
____ आवश्यकनियुक्ति- १०८९ (iii) अस्सजुदकिण्हते रसिदिणम्मि पउमप्पहो अ चित्तासु । धरणेण सुसीमाये कोसंबिपुरवरे जादो ।
तिलोयपण्णत्ती-~४।५३१ (iv) कौशाम्ब्यां पद्मतेजसम् ।
पद्मपुराण (रविसेण) ९८।१४५
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