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________________ ८६ उत्तर भारत के जैन तीर्थ कुमार इसी नगरी में उत्पन्न हुआ । उसके मामा साल और महासाल पिठिचम्पा के राजा थे । उन्होंने अपने भांजे को राज्य देकर महावीर स्वामी से दीक्षा ले ली । कालक्रम से गांगलिकुमार ने माता-पिता के साथ गणधर गौतम स्वामी से दीक्षा ले ली । इसी नगरी के एक राजा दुमुख ने कौमुदी महोत्सव के अवसर पर इन्द्रध्वज को अलंकृत और लोगों द्वारा उसका सम्मान करते हुए देखा । कुछ समय बाद उसी ध्वज को भूमि पर लोगों के पैरों के नीचे पड़ा देखकर उसे ऋद्धि के अनृद्धिस्वरूप का स्मरण हुआ और वह प्रत्येकबुद्ध बना । यहीं राजा द्रुपद की कन्या द्रौपदी का स्वयंवर में पंचपाण्डवों के साथ विवाह हुआ । इसी नगरी का एक अन्य राजा धर्मरुचि बहुत धर्मनिष्ठ था । काशी के राजा से युद्ध के समय वह अपने पुण्य के प्रताप से अपनी सारी सेना आकाश मार्ग से काशी ले गया । अनेक संविधानरूपी रत्नों की निधान यह नगरी महातीर्थ है । भव्य लोग यहां की यात्रा कर जैन शासन की प्रभावना करते हुए अपना कल्याण करते हैं ।" १३वें तीर्थङ्कर विमलनाथ के जन्मस्थान, माता-पिता तथा उनके च्यवन, जन्म आदि कल्याणकों के बारे में जैन साहित्य' में विस्तृत विवरण प्राप्त होता हैं । उन्होंने ( जिनप्रभ ने ) इस नगरी के अन्य नामों “पंचकल्याणकनगर" एवं "शूकरक्षेत्र" का जो उल्लेख किया है, वह जैन साहित्य में अन्यत्र अप्राप्त है, अतः जिनप्रभ के उक्त कथन को उनकी व्यक्तिगत विश्वास पर ही आधारित समझना चाहिए । १. (i) आवश्यक नियुक्ति - ३८२ (ii) आवश्यकवृत्ति ( मलयगिरि) पृ० २३७ और आगे (iii) कंपिल्लपुरे विमलो जादो कदवम्मजयस्सामाहि । माघसिदचोदसीए णक्खत्ते पुव्वद्ददे || तिलोयपण्णत्ती ४।५३८ (iv) सुरलोकादिमं लोकमिन्द्र ेऽस्मिन्नागमिष्यति । क्ष ेत्रेऽत्र पुरि काम्पिल्ये पुरुदेवान्वयो नृपः ॥ उत्तरपुराण ५९।१४ (v) काम्पिल्यजातो विमलो मुनीन्द्रो.... ...... वराङ्गचरित २७।८४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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